22 अगस्त 2011

यादों के सहारे ...


9 अगस्त २००6 को मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था और मेरी सबसे पहली पोस्ट रक्षा बंधन थी, पूरे 5 साल हो गए हैं ये सफर अभी भी जारी है कब तक रहेगा नहीं पता, बहुत सी अड़चनें आईं कभी रूका, कभी धीमा हुआ मगर फिर मित्रों का स्नेह उनका अपनापन इस सफर को पूरा करने लिये मिला बस फिर क्या फिर से धीमी गति से ही सही निकल पड़े हैं मंजिल की तलाश में थोड़ा देर हो गई सेलीब्रेशन में... अगस्त में हालात कुछ अजीब से हो जाते हैं मिले जुले भावों से घिरी मैं प्रयास करती हूँ कि उन यादों से बाहर निकलूँ जो दिल को झंझोड कर रख देती हैं पर ऐसा हो नहीं पाता एक मासूम आते-आते रह गया थाअगस्त महीने में जो आज १३ साल का होता... जिसका नाम भी दे चुके थे नाम था ईषाण बस डॉ० की लापरवाही उसको बचा नहीं पाई वरना वो भी इस संसार को देख पाता ...मेरी ये रचना मेरे बेटे ईषाण को समर्पित है जो कभी भी मेरी यादों से, दिल दे दूर नहीं हो सकता ये रचना पहले भी बलॉग पर दी जा चुकी है...


















कल जब वो
मेरी गोद में आया,
बहुत मासूम !
बहुत कोमल !
इस संग दिल दुनिया से
अछूता सा,
शान्त!
बिल्कुल शान्त !
ना कोई धड़कन
ना ही कोई हलचल।
मेरा सलौना,
मेरा नन्हा,
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
नहीं भूल पाती
उसका मासूम चेहरा,
नहीं भूल पाती
उसका स्पर्श।
बस जी रहीं हूँ
उसकी यादों के सहारे।
देखती हूँ
हर रात उसका चेहरा
टिमटिमाते तारों के बीच
और जब भी कोई तारा
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
लगता है मेरा नन्हा
लौट आया है
तारा बनकर
और कहता है-
"
मत रो माँ मैं यहीं हूँ
तुम्हारे सामने
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
यूँ ही रोते हुये
मेरा दिल दुखता है माँ
तुम्हें यूँ देखकर
मैं तो आना चाहता था,
किन्तु नहीं आने दिया
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
इस दुनिया से,
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
मैं यहाँ खुश हूँ
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
अब कभी भी
ये मिलन हमारा




Bhawna

14 अगस्त 2011

वतन से दूर हूँ लेकिन, अभी धड़कन वहीं बसती






      


















वतन से दूर हूँ लेकिन


अभी धड़कन वहीं बसती


वो जो तस्वीर है मन में


निगाहों से नहीं हटती।




बसी है अब भी साँसों में


वो सौंधी गंध धरती की


मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में


दुआ रब से यही करती।




बड़े ही वीर थे वो जन


जिन्होंने झूल फाँसी पर


दिला दी हमको आजादी।


नमन शत-शत उन्हें करती।


Bhawna

8 अगस्त 2011

मित्रता दिवस पर मेरी ओर से सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ









1.
अकेलापन
खलता नहीं अब
मित्र जो संग।







2.
विश्वास डोर
बाँधे सच्ची मित्रता
चारों ही ओर।

3.
छोड़े न हाथ
दुख हो चाहे सुख
मित्र का साथ।


4.
खुशबू बन
बिखरे चहुँ ओर
ये मित्रगण।

5.
ज्यूँ मित्र मिले
मन-उपवन में
फूल से खिले।

6.
बस था साथ
दुख की डगर में
दोस्त का हाथ।

7.
मन के दीए
जब मित्रों ने छुए
रोशन हुए।

8.
स्वर्ग आभास
टूटती साँसों संग
मित्र हो पास।

9.
साँसों में बसी
मित्रता की सुगंध
पनपे छंद।

10.
हाथ है तंग
रिश्ते नाते अपंग
है मित्र संग।


Bhawna