26 फ़रवरी 2012

कुछ लम्हें ऐसे भी...


बहुत बुरा बीता ये फरवरी का महीना बीमारी ने इस कदर पकड़ा की छोड़ने का नाम ही नहीं लिया, यहाँ तक कि अस्पताल में एडमिट तक होना पड़ा, पूरा हफ्ता तो सिर दर्द ने बस नींबू की तरह निचोड़ ही डाला, ऐसा लगा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई थी और अब लौटकर आई हूँ विश्वास ही नहीं होता कि वो सब मेरे साथ हुआ।
सब छुट गया पढ़ना-लिखना, आना-जाना, परेशानी इस कदर बढ़ी कि जन्मदिन की बधाईयाँ जो मेरे अपनों ने मुझ तक भेजी वो भी मैं ना ले पाई ना कोई फोन ना कोई मेल मेरे अपने पाठको तक की मैं देख नहीं पाई बहुत बुरा लगा मुझे। आप सबसे माफी माँगते हुए फिर से इस लेखन कि दुनिया में वापस आ रही हूँ धीरे-२। आपको जल्दी ही हाइकु पर मेरी नई पुस्तक पढ़ने को मिलेगी।
मेरे बीमार होने से प्रगीत और मेरे अपनों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा, बच्चों का उदास चेहरा भी मुझे सहना पड़ा उनके भाव मेरे मन को छू रहे थे और मैं बेबस कुछ नहीं कर पा रही थी बस कुछ पंक्तियां मन के पटल पर उभर कर आईं जो कुछ इस तरह थीं-


















मुझे देखकर

तुम्हारी आँखों में

टिमटिमाने लगे थे

जो आँसू

मेरा सहारा पाकर

जो समा गए थे

मेरे कान्धों पर

वो मोती बन

आज भी मेरे साथ हैं...



Bhawna

17 फ़रवरी 2012

मेहनत के रंग

डॉ भावना कुँअर जिस सहजता से हाइकु या ताँका की रचना करती हैं , छोटे बच्चों के लिए भी उसी सहजता से सर्जनरत हैं । आज प्रस्तुत है आपकी कविता जो सद्य  प्रकाशित  संग्रह गीत -सरिता से ली गई है

3 फ़रवरी 2012

ताँका (गर्भनाल फ़रवरी)

गर्भनाल के फ़रवरी अंक में डॉ0 भावना कुँअर के ताँका पढ़िएगा । पूरा अंक पढ़ने  के लिए  क्लिक कीजिए-