tag:blogger.com,1999:blog-32440081.post116075157843102885..comments2023-10-29T20:17:45.535+11:00Comments on दिल के दरमियाँ - डॉ० भावना कुँअर: हिन्दी का परचम लहरायेंDr.Bhawna Kunwarhttp://www.blogger.com/profile/11668381875123135901noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-32440081.post-75646840824359265862006-10-19T15:53:00.000+10:002006-10-19T15:53:00.000+10:00राकेश जी, दुर्गेश जी,प्रियंकर जी रचना पसन्द आई उसक...राकेश जी, दुर्गेश जी,प्रियंकर जी रचना पसन्द आई उसके लिये शुक्रिया । दुर्गेश जी आपका कहना काफी हद तक सही है हम चाहे तो बहुत कुछ कर सकते हैं। प्रियंकर जी आपकी साईट भी देखी बहुत सुन्दर रचनायें पढने को मिलीं। <br /><br />डॉ० भावनाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-32440081.post-12966462569327736532006-10-16T23:11:00.000+10:002006-10-16T23:11:00.000+10:00भावना जी ,
कविता के भाव अच्छे लगे . आपकी ...भावना जी ,<br /> कविता के भाव अच्छे लगे . आपकी इस कामना में हम सब का स्वर शामिल है . समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लाएं आपको कुछ अच्छी कविताएं पढने को मिलेंगीं.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-32440081.post-4971642488162404232006-10-16T21:57:00.000+10:002006-10-16T21:57:00.000+10:00भावना जी,
नमस्कार.
हिन्दी के प्रति आपकी भावनाएं पढ...भावना जी,<br />नमस्कार.<br />हिन्दी के प्रति आपकी भावनाएं पढकर अच्छा लगा. यह दिवस विदेशों <br />में रह रहे भारत-वंशियों को एक करने में अवश्य सहायक हो सकता <br />हॆ, लेकिन यहां अखबारों में हिन्दी-दिवस के अवसर पर सम्मान के <br />समाचार पढकर दु:ख होता हॆ. आप ही बताईए जिस देश की <br />राष्ट्रभाषा ही हिन्दी हॆ उस देश के नागरिकों द्वारा हिन्दी के नाम <br />पर सम्मान लेना या देना कहां तक उचित हॆ. ऒर फिर चलो <br />सम्मान ले भी लिया, लेकिन उसके लिए कुछ करो तो सही.<br /> <br />संभवत: विश्व में भारत ही एक ऎसा देश हॆ जहां उसकी अपनी <br />राष्ट्रभाषा के लिए सम्मान दिया जाता हॆ, ऒर फिर एक दिन का <br />समारोह या सप्ताह मनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री. ऎसा लगता <br />हॆ जॆसे शहीद-दिवस जॆसे हिन्दी-दिवस को लोग श्रध्दांजलि देकर <br />वर्षभर के लिए भुला देते हॆं.<br /> <br />क्षमा करें, इस पत्र का आशय किसी की भावनाऒं को आहत <br />करना न होकर "ईकविता" के माध्यम से हिन्दीप्रेमियों तक अपने दर्द को व्यक्त <br />करना हॆ.<br /> <br />शुभकामनाओं सहित,<br /> <br />सादर,<br /> <br />दुर्गेश गुप्त "राज"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-32440081.post-3601779032973278562006-10-14T05:13:00.000+10:002006-10-14T05:13:00.000+10:00चाँद सजा है ज्यों अंबर के माथे की बन बिन्दी
चलो आज...चाँद सजा है ज्यों अंबर के माथे की बन बिन्दी<br />चलो आज संकल्प करें हम<br />अपनी हर कोशिश ऐसी हो<br />अखिल विश्व के भाल सजे यह अपनी भाषा हिन्दीराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.com