29 सितंबर 2007

ये खून के रिश्ते!!!


एक चेहरा जो

हर पल मेरी आँखों में

रह-रहकर आता है

जिसे किया गया मज़बूर

मुझे भुलाने के लिये

पर क्या मैं

भुला पाया वो चेहरा!

नहीं कभी नहीं

उसी चेहरे ने दिया था मुझे

मेरी माँ जैसा प्यार.

जब मैं भटका करता था

सड़कों पर

भूख और प्यास से बेहाल

सोया करता था फुटपाथ पर,

फिर वही ले गयीं मुझे

अपने घर, अपना बेटा बनाकार

पर वक्त की मार देखो

मुझे उस माँ को ही छोड़ने पर

मज़बूर कर दिया

उनके अपने ही बेटों ने

क्यों ?

क्योंकि मैं उनका सगा भाई नहीं था

था तो बस एक फुटपाथी,

मैं चला आया

उस माँ के आँचल से दूर

किन्तु आज़ तक नहीं भूला

उस माँ का प्यार

उसकी रोती तड़फती आँखें मेरे लिये,

मैं जीये जा रहा था

उन यादों के सहारे

किन्तु आज़ जिन्दा रहने की चाह

अचानक मर गयी

क्योंकि

आज़ देखा है मैंने

एक ऐसा मंजर जिसे देखने के बाद

नहीं जीना चाहता और अब

देखा है मैंने आज़

अपनी माँ को

यहीं फुटपाथ पर

चिथड़ों में लिपटे हुये

उलझे बिखरे बाल

पैरों में फटी बिवाईयाँ

चेहरों पर दर्द की परछांईयाँ

मात्र एक हड्डियों का ढ़ाँचा

नहीं देख पा रहा

अपनी मुँह बोली माँ का ये हस्र

ये क्या हुआ? ये कैसे हुआ?

किसने किया ये हाल मेरी माँ का?

शायद उन्हीं बेटों ने

जिन्होंने एक दिन

मुझे घर से निकाल फेंका था,

उन्होंने अपनी माँ को भी नहीं बख्शा

जो न समझ पाये

माँ की भावनाओं को

तो फिर क्या समझेंगे

उसकी ममता को

क्या यही होते हैं अपने

क्या इन्हें ही

दी जाती है परिभाषा

अपने खून की

तो अच्छा है

मैं उनका खून नहीं हूँ

मेरी माँ के इस हाल ने

झकझोर ड़ाला है

मेरा अस्तित्व,

एक साथ हज़ारों सर्प

मेरे शरीर में

बिलबिलाने लगे,

मेरा मस्तिष्क

शून्य हो गया

और मैं

जा गिरा

अपनी माँ के चरणों में

बनकर एक बुत

डॉ॰ भावना

7 सितंबर 2007

जन्म दिन मुबारक हो माँ !

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मेरी माँ के जन्मदिन पर उनको मेरे मन की भावनायें



जन्म दिन मुबारक हो माँ !

लो माँ एक साल और बीत गया

ना हो पाया

इस साल भी

हमारा मिलन,

सोचा था

इस जन्म दिन पर

मैं तुम्हारे साथ रहूँगी,

पर मेरी विवशता देखो,

नहीं आ पाई इस साल भी,

क्योंकि

मैं निभा रही हूँ

उन कसमों को, उन वादों को

जो तुमने मुझे निभाने को कहा था

परिवार के उन दायित्वों को

जो तुमने मुझे सिखाया था

जब मैं विदा हो चली थी

उस घर से इस घर के लिये

पर माँ !

मैं माँ और पत्नी के साथ-2

इक बेटी भी हूँ ना

मुझे भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हारी वो सुकून भरी गोद

जब मैं टूटती या बिखरती हूँ

पर, फिर लग जाती हूँ

निभाने दायित्वों को

तुम्हारी ही दी हुई

शिक्षा को

तुम भी तो मुझे याद करती होगी माँ !

पर

तुम भी तो घिरी हो

दायित्वों के घेरे में,

पर, तुम कभी नहीं थकती।

लेकिन, मैं देख पाती हूँ

वो मायूसी

जो मेरे दूर रहने से छा जाती है

तुम्हारी आँखों में

पर, माँ ! तुम उदास मत होना

शायद अगले साल

तुम्हारे जन्मदिन पर मैं

तुम्हारे पास होऊँ

इसी इन्तजार में

आज से ही गिनती हूँ दिन

३६५ हाँ पूरे ३६५ दिन

फिर मिलकर काटेगें केक

मैं खिलाऊँगी केक का टुकडा तुम्हें

जो अपनी देश की धरती से दूर रहकर

नहीं खिला पायी

और तुमने भी तो..

मेरे ही कारण

केक बनाना ही छोड़ दिया

और छोड़ दिया जन्म दिन मनाना भी

माँ ! अगले साल मनाएँगे जन्म दिन

सजायेंगे महफिल

और तुम

केक बनाकार रखना

और फिर

मेरा इन्तजार करना...

मेरा इन्तजार करना...

डॉ० भावना

5 सितंबर 2007

गोविन्दा आला रे !



नर व नारी

मनायें जन्मदिन

धूम-धाम से।


मटकी फोडें

गोविन्दा जब आये

माखन खायें।


मन्दिर सजें

फूलों से, गहनों से

कन्हैया हँसें।


आयी बहार

मथुरा नगरी में

बरसा प्यार।


फूलों की माला

पहने नन्दलाला

संग हैं बाला।


सजी द्वारका

दुल्हन से रंग में

कृष्णा हैं आयें।

डॉ॰ भावना