28 अप्रैल 2008

तो क्या ! अब मुझे हमेशा के लिये अपनी मिट्टी से दूर रहना होगा

आज़ एक खबर पढ़ी, पढ़कर हमारी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। खबर थी कि अब पी-एच० डी० और एम० फिल० की डिग्री लेकर भी आपको नेट की परीक्षा देनी होगी ऐसा विचार किया जा रहा, अब जब विचार किया जा रहा है तो उसको पूरा भी होते कहाँ देर लगेगी वैसे ही क्या बेरोज़गारी कम है भारत में जो अब और बढ़ाने के रास्ते खोज़े जा रहे ,हैं क्या पी-एच० डी० और एम० फिल० करना इतना आसान है मुझसे पूछो मैंने कितने पापड़ बेले हैं अपनी पी-एच० डी० पूरा करने के लिये तब जाकर इस डिग्री को हासिल किया है, पूरा किया है अपना ख्वाब डिग्री कॉलेज़ में जॉब करने का।

अगर ये नेट परीक्षा पहले से ही होती तो अच्छा था हम भी देते, हो सकता है अभी भी अच्छा हो, पर अब हम जैसों का क्या?

अब मैं यहाँ युगांडा में हूँ जॉब कर रही हूँ वैसे तो सैटल्ड हूँ अपने वतन से भी जुड़ी हूँ ब्लॉग के माध्यम से लेकिन कभी-कभी एक हूक सी उठती जब अपने वतन की याद आती है तो मन करता है कि सब कुछ छोड़कर चली जाऊँ अपने वतन की छाँव में, पर अब ये खबर पढ़कर तो लगता है वो छाँव मुझे अब कभी भी नसीब नहीं होगी, क्या मैं भारत जाकर पहले नेट का पेपर दूँ? फिर से पढ़ूँ? तो मतलब ये हुआ की मेरी इतने सालों की नौकरी, मेरी इतने सालों की पढ़ाई सब बेकार थी और मैं घर में बैठकर मक्खियाँ मारूँ, नहीं ये सब कैसे कर सकूँगी पढ़ना पढ़ाना मेरी जिंदगी की साँसे है, मेरी धड़कन है तो क्या मैं अपनी धड़कन के बिना जिंदा रह पाऊँगी ? अब मैं बहुत असमंजस में हूँ कि क्या कभी मैं अपना ख्वाब पूरा कर पाऊँगी...
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डॉ० भावना
मेरा आशय किसी को भी आहत करने का नहीं था, जो बात इस समाचार को पढ़कर मेरे दिल में आई वही मैंने आप दोस्तों से शेयर करना चाही ....
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26 अप्रैल 2008

आईये थोड़ा सा लुत्फ आप भी उठा लीजिये

24 अप्रैल का पूरा दिन बहुत व्यस्त गया जाता भी क्यों नहीं मेरी छोटी बेटी के स्कूल में " कला प्रदर्शनी " जो थी। वहाँ बच्चों का हुनर देखते ही बनता था कहीं पर कला की बात हो और हम ना जायें ऐसा तो हो नहीं सकता और बीच में ही प्रोग्राम छोड़कर चले आयें ये ना हमारी सभ्यता हमें करने देती है और ना ही हमारी आदत है।


बच्चों ने बहुत-बहुत सुन्दर पेंटिग बनायी हुई थी आप लोग तो देखने से वंचित रह गये आप हमें यहाँ बैठे-बैठे हमारे देश हमारे शहर की हमें सैर कराते हैं तो चलिये आज़ हम भी यहाँ नन्हें-मुन्नों की कलाकारी आपको दिखाते हैं ...

यह एक ऐसा समूह है जो रंग भेद बिल्कुल नहीं जानता अगर कुछ जानता है तो वो है प्यार, इनकी नन्हीं-२ मुस्कानों में मैंने खुद को एक बंधन में बंधा हुआ पाया "प्यार के बंधन में" जिसने मुझे प्रोग्राम की समाप्ति तक बांधे रखा ...

सर्वप्रथम कुछ चित्र देखिये जो बच्चों ने बनाये हैं-


मेरी बेटी ऐश्वर्या (उम्र ७ वर्ष) द्वारा बनाया चित्र :





ऐश्रवर्या द्वारा बनाया "ऐलियन मास्क":




ऐश्रवर्या द्वारा बनाया आईस्क्रीम स्टिक का हैट जिस पर पोस्टर कलर से बनाई खोपड़ी और हड्डी :

एक बच्चे द्वारा बनाया गया स्पाइडर मैन जो थर्माफोल से बने टी० वी० के अन्दर दिखाया गया :




कोल्ड ड्रिंक की स्ट्रा से बना घर, पिस्ते के छिलके से बना पेड़ और क्ले से बने फूल क्या शोभा दे रहे हैं:

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इसके बाद नम्बर आया फैशन शो का इसमें काफी बच्चों ने भाग लिया इसकी खासियत ये थी कि फैशन शो में पहने जाने वाले सभी वस्त्र बड़े अनोखे थे देखिये-





ये मोबाईल के रीचार्ज़ कार्ड से बनी ड्रैस हैः




ब्रूम स्टिक से बनी ड्रैस :
आज़ कम्यूटर थोड़ा थका हुआ महसूस कर रहा है घिसट-घिसट कर चल रहा सुबह १० बज़े पोस्ट डालनी शुरू की थी अब शाम के ५ बज़ने वाले हैं पर पोस्ट है की पूरी होने का नाम ही नहीं लेती शायद इतनी पिक्चर डालने से ये बुरा हाल हुआ है, तो अब मुझे चलना चाहिये आज़ वीक एंड हैं घूमने जाना है बहुत लेट हो गयी हूँ अभी भी पोस्ट में ही उलझी रही तो मेरे बच्चे मुझसे नाराज़ होकर सो भी जायेंगे, तो अलविदा फिर मिलेंगे अगर आपको चित्र पंसद आये तो टिपण्णी देना भूलियेगा मत और फिर लौटेंगे और चित्रों के साथ...
भावना कुँअर

19 अप्रैल 2008

आप सबके सहयोग और स्नेह की आभारी



प्रिय पाठकों मेरी नव प्रकाशित पुस्तक "तारों की चूनर" (हाइकु संग्रह) के बारे में विस्तृत जानकारी के लिये निम्न लिंक पर देख सकते हैं आप सबके सहयोग की आशा करती हूँ।

इस पुस्तक को प्राप्त करने के इच्छुक मित्र भी इस लिंक के माध्यम से पुस्तक को प्राप्त कर सकते हैं:


डॉ० भावना कुँअर

10 अप्रैल 2008

अरे कोई आत्मा आ गई तो !



यूँ बने हम भी हँसी के पात्र …

हुआ यूँ कि शुक्रवार को हमारे पतिदेव (प्रगीत) के मित्र ने उनको बताया कि " सर जी कल से तो नवरात्र शुरू हो रहें हैं" ।

" अच्छा" हमारे पतिदेव ने बस इतना ही कहा…
तभी उनके मित्र ने अमेरिका अपने बेटे को फोन मिलाया और बोले-" बेटे कल से नवरात्र शुरू हो रहें हैं तो तुम प्याज़, लहसुन मत खाना और हो सके तो सारे व्रत रख लेना या फिर पहला और आखिरी रख लेना और पूजा कर लेना" ।

बेटे ने भी एक समझदार बेटे की तरह " जी पापाजी" कहकर उनका मान बढ़ाया।
प्रगीत के मित्र बोले कि -"मेरी पत्नी का इंडिया से फोन आया है कि कल से नवरात्र शुरू हैं इसीलिये मैं आपको बता रहा हूँ"।

प्रगीत बोले-"ठीक है मैं भी घर में फोन करके बता देता हूँ कि वो भी तैयारी कर लें मैं तो ज्यादा जानता नहीं क्योंकि मेरे परिवार में तो मम्मी कबीर पंथी होने के कारण ये सब नहीं करती किन्तु मेरी पत्नी देवी जी की पूजा भी करती हैं और नवरात्र भी रखती हैं मैं और बच्चे भी उनका अनुशरण करते हैं"।

अब जैसे ही प्रगीत का फोन आया मैं तो जुट गयी तैयारी करने में जल्दी से कॉलेज़ से लौटी फटाफट सुपर मार्केट पहुँची व्रत की सामग्री लेने, कहीं कुछ मिला तो कहीं कुछ, खैर अन्त भला तो सब भला, बड़ी भागदौड़ के बाद जो कुछ मिला घर लेकर आई और आने वाले कल की तैयारी करके रख दी। हाउस गर्ल को बोला-" कल जल्दी आना हमारे व्रत शुरू हो रहें हैं तुमको जल्दी आकर घर की साज- सफाई करना हैं ताकि हम जल्दी से पूजा करके अपने-अपने ऑफिस निकल जायें"।

हम लोग बच्चों सहित जल्दी-2 उठे बहुत श्रद्धा के साथ पूजा पाठ किया और थोड़े फल लेकर अपने-अपने काम पर निकल पड़े, कोई १२ बजे मेरे पास प्रगीत का फोन आया वो बोले कि-“ आज़ हमें डिनर पर उनके दोस्त ने बुलाया है तो मैंने उनको बोल दिया कि हमारा तो व्रत है तो हम खाना तो नहीं खायेंगे हाँ मगर मिलने जरूर आ जायेंगे क्योंकि मिले हुये भी काफी समय हो गया है"।

मैंने कहा-“ ठीक कहा आपने” और शाम को ७ बज़े का प्रोग्राम तय हो गया। हम अक्सर वीक एंड पर दोस्तों के यहाँ बारी-बारी से डिनर का प्रोग्राम रखते हैं इससे मिलना जुलना भी हो जाता है और यहाँ परदेस में अपनों से हुई दूरी से दुखी मन को, अपने बीते हुये दिनों को, अपने बचपन को, एकदूसरे से कह सुनकर मन को हल्का करने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी बच्चों के पेपर हों तो ये सब स्थगित करना पड़ता है। इसी कारण इस बार एक-दूसरे से मिले एक महीना बीत गया।

अभी दोपहर के २ बज़े थे कि मेरी मित्र का फोन आया वो मुझसे बोली कि - "नवरात्र तो सोमवार से हैं हमने अभी इंडिया फोन किया है क्योंकि जब से तुमसे बात हुई है हमारा तो मूड़ बहुत खराब हो गया था कि हमारे नवरात्र छूट गये पर उन लोगों ने बताया है कि वो तो सोमवार से हैं"।

अब अब चौंकने की बारी मेरी थी , मेरा तो दिमाग खराब हो गया, ऐसा पहली बार हुआ कि हमने ना तो न्यूज़ ही देखी ना ही इंड़िया फोन किया, मन पर विचारों की आँधियों ने हल्ला बोल दिया –“पर पापाजी तो हमेशा ही हमें सूचित करते हैं इस बार उन्होंने भी नहीं बताया” अपने आप से बड़बड़ाती रही, खैर हमने तुरन्त पापाजी को फोन मिलाया और अपना पूरा हाल कह सुनाया अब तो बारी पापाजी के बोलने की थी और हमारी सुनने की, वो बोलते रहे और हम मुँह लटकाये सुनते रहे, जब हम से नहीं रहा गया तो हमने कहा कोई बात नहीं अब रख लिया तो रख लिया अब क्या तोड़ना फिर एक बड़ी सी डाट खायी वो बोले- "तो क्या तुम अमावस्या की पूज़ा करके कोई सिद्धी पाना चाहते हो? चुपचाप जाओ और जाकर सब खाना खाओ"।

हमने सहमे हुये-" जी पापाजी" कहकर फोन रख दिया। अब घर आये मुँह लटकाये अब तो शरीर में जान भी ना बची खाना बनाने की ना ही खाने की पापाजी की डाट जो खायी थी खैर अब- जल्दी-जल्दी ढ़ोकला बनाया बच्चों को जैसे तैसे समझाया खुद भी खाया और पड़ोस में भी भिजाया। फिर प्रगीत को फोन मिलाया उन्हें भी खाने को उकसाया और पापजी की डाट का किस्सा सुनाया। फिर मैंने अपनी मित्र को फोन मिलाया उनको बताया कि तुम सही थी पर बिल्कुल सही नहीं थी -"क्योंकि नवरात्र सोमवार को नहीं रविवार को हैं "।वो बोलीं हो सकता है पर हमें तो सोमवार ही बताया है खैर जब भी हों आज़ नहीं हैं ना तो बस आप लोग आ जाईये हम इन्तज़ार कर रहें है…

अब खबर है तो फैलेगी ही ना हम वहाँ पहुँचे वहाँ हमारे काफी मित्र थे जो भी मिले वही पूछे क्यों साहब आज़ आपने व्रत रखा अमावस्या को? कौन सी सिद्धी प्राप्त की ? कोई कहता अरे आज़ आप लोगों से दूर ही रहना होगा कहीं आप किसी आत्मा को ना बुला लें या वो आपके पूज़ा करने से खुदबखुद ही ना आ जाये क्योंकि इस दिन तो तांत्रिक पूज़ा किया करते हैं। ये सब बातें चल ही रही थी कि पापाजी का फोन आ गया वो बोले -"बेटा नवरात्र सोमवार से ही हैं"।

अब हम उस महफिल में जाकर लटके मुँह से सबको कहते हैं कि- " पापाजी का फोन आया है वो बोले कि-“ नवरात्र सोमवार से हैं " बस वो सब हमारी शक्ल देखें और हँसे और हम ? हमारी हालत तो आप सोच ही सकते हैं कैसी हुई होगी तभी तो अपना दुख, अपना लटका चेहरा आप दोस्तों में शेयर करने आ गये प्लीज़ आप लोग मत हँसियेगा…


(यह लेख किसी भी व्यक्ति या धर्म पर कटाक्ष नहीं है अगर किसी भी व्यक्ति को किसी भी बात का बुरा लगे तो मैं पहले से ही माफी माँगती हूँ …)


झूठ नहीं बोलूँगी क्योंकि अब व्रत चल रहें हैं हम अपने बच्चों को और खुद को भी अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा रखने का भरसक प्रयास करते हैं…


भावना