24 जनवरी 2008

इन्तज़ार... सफ़र के अन्तिम पड़ाव का


उदासी के ये बढ़ते घेरे

मेरे अन्तर्मन में

काले सर्प की तरह

फन फैलाकर

बैठ गये हैं।


एक अँधेरे कुँए में

फेंक दिये गये

अजन्मे शिशु की तरह

डूबता जा रहा है

मेरा अस्तित्व।


सन्नाटे भरा हर पल

मेरे रोम-रोम को

भूखे शेर की तरह

नोंच-नोंच कर खाये जा रहा है।


जन्म से मृत्यु की
ओर

बढ़ता ये
सफ़र

साँसों की धूमिल डगर
को

तार-तार किये जा रहा है।


अब तो है बस इंतजार

इस सफ़र के अंतिम पड़ाव का

ताकि फिर कर सकूँ तैयारी

इक नये सफ़र की।


शायद आने वाला नया सफ़र

दे सके मेरे सपनों को

एक पूर्णता

एक नयी उंम्मीद...

डॉ० भावना