27 जुलाई 2007

अनभिज्ञ चिड़िया


एक चिड़िया
आयी फुदकती सी
नाज़ुक सी, चंचल सी
अपनी मस्ती में मस्त सी
बेपरवाह
स्वछन्द
अनभिज्ञ सी
अपनी सपनों की दुनिया में
खोई सी
अचानक रुकी
डरी, सहमी
भय से
विस्फरित आँखें
एक झटका सा लगा
और कदम वहीँ रुक गए
साहस जुटाया
पर धैर्य टूट गया
बचना चाहा
पर गिर पड़ी
साँसे बिखरने लगीं
शरीर बेज़ान होने लगा
पल भर में ही
सारी चंचलता, कोमलता
नष्ट हो गयी
जुटा पायी साहस
उस दीर्घकाय परिंदे से
खुद को बचाने का

डा भावना

20 जुलाई 2007

तभी तुम्हें लिक्खी है पाती


अब ये दुनिया नहीं है भाती
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।

है बड़ी बेचैनी मन में,
नफ़रत फैली है जन-जन में,
नींद भी अब तो नहीं है आती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।



डॉ० भावना

8 जुलाई 2007

यादों के सहारे


कल जब वो
मेरी गोद में आया,
बहुत मासूम !
बहुत कोमल !
इस संग दिल दुनिया से
अछूता सा,
शान्त!
बिल्कुल शान्त !
ना कोई धड़कन
ना ही कोई हलचल।
मेरा सलौना,
मेरा नन्हा,
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
नहीं भूल पाती
उसका मासूम चेहरा,
नहीं भूल पाती
उसका स्पर्श।
बस जी रहीं हूँ
उसकी यादों के सहारे।
देखती हूँ
हर रात उसका चेहरा
टिमटिमाते तारों के बीच
और जब भी कोई तारा
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
लगता है मेरा नन्हा
लौट आया है
तारा बनकर
और कहता है-
"मत रो माँ मैं यहीं हूँ
तुम्हारे सामने
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
यूँ ही रोते हुये
मेरा दिल दुखता है माँ
तुम्हें यूँ देखकर
मैं तो आना चाहता था,
किन्तु नहीं आने दिया
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
इस दुनिया से,
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
मैं यहाँ खुश हूँ
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
अब कभी भी
ये मिलन हमारा…

5 जुलाई 2007

कैसे मुस्काया अमलतास...



1
झुलसा तन
देख अमलतास
खिला था मन।


2
दुख सदृश
सहे भीषण गर्मी
अमलतास।

3
वर्षा ‍ऋतु में
फूटे अंकुर, खिला
अमलतास।

4
आया यौवन
अमलतास वृक्ष
लगा झूमने।

5
बिछा कालीन
बुनकर जो बने
अमलतास।

6
नवयौवना
बनाये उबटन
पीत पुष्प से।

7
पीली चूनर
पहन इतराये
अमलतास।

8
रिझाने लगा
सोने के गहनों से
अमलतास।

9
उछले खूब
पंछियों के समूह
खिले जो फूल।

10
छनकी धूप
अमलतास तले
स्वर्ण समान।

11
घिरे हुये हैं
अमलतास वृक्ष
पंछी दल से।

12
था प्रातःकाल
अलसाया ही रहा
अमलतास।

13
चहकी धूप
हंसे अमलतास
बच्चों समान।