28 अगस्त 2006

दुल्हन


माथे पे बिंदिया चमक रही

हाथों में मेंहदी महक रही।


शर्माते से इन गालों पर

सूरज सी लाली दमक रही।


खन-खन से करते कॅगन की

आवाज़ मधुर सी चहक रही।


है नये सफर की तैयारी

पैरों में पायल छनक रही।
डॉ० भावना

21 अगस्त 2006

प्यार की इमारत

मेरे जन्मदिन पर मेरे पति महाशय ने मुझे एक बहुत खुबसूरत तोहफा दिया जिसे मैं सहेजकर हमेशा अपने पास रखती हूँ वो शब्द जो उन्होंने मेरी तारीफ में कहे हैं उनसे अपनी साइट की शान बढाना चाहूँगी।


कभी मुझपे है प्यार आता कभी मुझसे शिकायत है,

न जाने प्यार करने की खुदा कैसी रिवायत है।


कभी मैं डूबता हूँ प्यार की गहराईयों तक भी,

मगर पाता तुझे ही हूँ वहाँ, कैसी कयामत है।


कोई भटका हो सहरा में और उसको झील मिल जाए,

तुझे पाकर लगा ऐसा, मिली ऐसी नियामत है।


मैं तुझको देखता था, सोचता था, बात करता था,

बडी मुश्किल से ये जाना, मुझे तुमसे मुहब्बत है।


दिलों की दफन है जिसमें मुहब्बत आज तक जिन्दा,

उसे हम ताज कहते है वो इक ऐसी इमारत है।

प्रगीत कुँअर

15 अगस्त 2006

15 अगस्त स्वतन्त्रता के दिवस/ मुक्त छन्द/ माँ का दर्द 7

मॉ का दर्द
एक रात मैं सो नहीं पाई;
सपनों में भी खो नहीं पाई।
उठकर रात में ही चल पडी;
थी बडी कूर बेरहम घडी।
चलते हुए कदम लडखडा रहे थे;
मन में भी बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे।
कुछ कदम चलने पर देखा
मेरा प्यारा देश जंजीरों में जकडा।
कैसे इसे छुडाऊँ?
कौन सी तरकीब लगाऊं?
तभी मेरे बेटे ने भाँप लिया मेरा दर्द
और बोला मत हो उदास
मैं कराऊँगा जरूर आजाद।
नई नई योजनाएँ बनाईं;
बहुत तरकीबें लगाईं।
लडा सच्चाई की लडाई;
जरा भी थकन न पाई।
फाँसी पर गया लटकाया;
पर जरा भी न घबराया।
फाँसी का फँदा कसता गया;
फिर भी भगत मेरा हँसता रहा।
काश एक नहीं मेरे होते हजार बेटे।
तो वो भी हँसते हँसते यूँ ही जान दे देते।
© डॉ० भावना कुँअर युगांडा

11 अगस्त 2006

जन्मष्टमी हाइकु 6

गैय्या से खेले
हैं, मैय्या की गोद में।
मोर निहारे।।
© डॉ० भावना कुँअर युगांडा

जन्मष्टमी हाइकु 5

देख रहे हैं
गिराकर मटकी
नटखट से।
© डॉ० भावना कुँअर युगांडा

जन्मष्टमी हाइकु 4

रूठा है मैय्या
वो माखन खिवैय्या
कृष्ण कन्हैया।
© डॉ० भावना कुँअर युगांडा

हाइकु जन्मष्टमी 3

मैय्या पुकारे
आँगन में खेले हैं
नन्द दुलारे।
©डॉ० भावना कुँअर युगांडा

जन्मष्टमी हाइकु 2

खुश बहुत, यशोदा मैय्या, जन्मा कृष्ण कन्हैया।
©डॉ० भावना कुँअर युगांडा

9 अगस्त 2006

आज रक्षाबंधन पर मेरे कुछ हाइकु 1

1.

रंग बिरंगी

राखियों से सजी हैं

सभी दुकानें।

2.

तकती राहें

भाईयों के आने की

बहनें आज।

3.

परदेस में

बहना ने भाई को

भेजी है राखी।

4.

बँधा है आज

पवित्र से धागे से

दोनों का प्यार।

5.

टूटता नहीं

बंधन ये प्यार का

साँसों के जैसा।

6.

पडी है सूनी

भईया की कलाई

राखी न आई।


© डॉ० भावना कुँअर

युगांडा