23 नवंबर 2011

कुछ इच्छाएँ ...












दौड़ लगाएँ


धूप के खरगोश


हाथ न आएँ।


















लगाए आस


सूखती हुई घास


लगी थी प्यास।




















वर्षा जो आई


धूप के खरगोश


दूर जा बैठे।



घास के जैसे

हैं उगती इच्छाएँ

हाथ न आएँ।



Bhawna

16 नवंबर 2011

सपनों का रंगीन धागा...













बीते वक्त की चादर से
चुरा लिया मैंने एक
सपनों का रंगीन 
रेशमी धागा...
और फिर उससे
नये वक्त की पैबंद लगी,
बिखरी-छितरी,टूटी-फटी
चादर को
एक बार फिर से
करने लगी प्रयास
पुराने वक्त की चादर समान
बुनने का ...
जिसमें बहता था 
अथाह प्यार का सागर...
जो टिका था
सच्चे सपनों की बुनियाद पर...
और जिसमें
भावों की पवित्र गंगा में
तैरती थी
समर्पण की नाव...
और उस नाव का खिवैया था
सच्चा और पवित्र प्यार...


Bhawna