11 नवंबर 2010

रात का सन्नाटा...

















रात का सन्नाटा
और भी बढ़ा देता है
मन की वीरानी को...
और ढकेल देता है
यादों की गहरी खाईयों में...
कभी न निकलने के लिए...
और गहराता जाता है
हर पल, हर क्षण
कभी न खत्म होने वाली
बीमारी सा
और एक दिन
ले जाता अपने संग
कभी ना लौटाने के लिए...


भावना


4 नवंबर 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ


आप सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक
शुभकामनाएँ ...

"दीपावली पर एक दीए की दर्द भरी कराह को महसूस करना चाहते हैं या उसका कुछ दुख बाँटना चाहते हैं तो इस लिंक को एक बार जरूर देखियेगा।"





http://gavaksh.blogspot.com/2010/11/2010.html

Bhawna



26 अक्तूबर 2010

आँखे















आँखे जाने क्यों


भूल गई पलकों को झपकना...

क्यों पसंद आने लगा इनको

आँखों में जीते-जागते

सपनों के साथ खिलवाड़ करना …

क्यों नहीं हो जाती बंद

सदा के लिए

ताकि ना पड़े इन्हें किसी

असम्भव को रोकना ।


Bhawna

14 अक्तूबर 2010

मेरा दर्द कुछ इस तरह भी...
















आँखों के नीचे

दो काले स्याह धब्बे ...

आकर ठहर गए

और नाम ही नहीं लेते जाने का...

न जाने क्यों उनको

पसंद आया ये अकेलापन।





Bhawna

7 अक्तूबर 2010

नहीं रही अब हिन्दी दूर ऑस्ट्रेलिया से...

ऑस्ट्रेलिया-"सिडनी" की बहुचर्चित प्रथम ऑनलाईन हिन्दी पत्रिका "हिन्दी गौरव" का अब प्रकाशन भी मासिक पत्रिका के रूप में प्रारम्भ हो गया है, जिसके प्रथम प्रकाशित संस्करण का विमोचन २ अक्तूबर को सिडनी में बहुत धूमधाम के साथ मनाया गया।
जिसके मुख्य संपादक अनुज कुलश्रेष्ठ जी ने संपादन समिति में मुझे और रामेश्वर काम्बोज जी को भी सम्मिलित किया है। इस पत्रिका के प्रथम संस्करण में मेरी दो रचनाएं और गॉधी जी पर लेख प्रकाशित हुए हैं।

साथ ही सिडनी में एक कवि सम्मेलन का आयोजन भी ११ सितम्बर २०१० को किया गया जिसमें मुझे भी कविता पाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ।

प्रस्तुत हैं "हिन्दी गौरव" पत्रिका में प्रकाशित उस कवि सम्मेलन पर समाचार और मेरी रचनाएं-













































29 सितंबर 2010

क्या आप बता सकते हैं कि ये क्या है?

आप तो जानते ही हैं कि मुझे फोटो खींचने का कितना शौंक है तो बस ये फोटो मैंने हाल ही में खींचा है। तो अब आपकी बारी है बताने की कि- ये है क्या? हाँ जानती हूँ कुछ लोग बता भी देंगे तो जल्दी
बताइये ना मुझे इंतजार रहेगा। फिर तैयार रहना अगले फोटो के लिए।














Bhawna


6 सितंबर 2010

अपनी जन्मस्थली को बहुत मिस कर रही हूँ ...

आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

आज शिक्षक दिवस पर मैं अपने सभी शिक्षकों को तहे दिल से याद करते हुए शत-शत नमन करती हूँ, जिनके कारण आज़ मैं इस मुकाम तक पहुँची हूँ, आज मैं भी एक शिक्षक हूँ मुझे भी मेरे छात्र बहुत प्यारे हैं, हाल ही में मेरी एक छात्रा Great Barrier reef की यात्रा पर गई थी, १५ दिन पानी के जहाज का आंनद उठाते हुए उसने जो भी महसूस किया सब मुझे बताया और तोहफे के रूप में आज मुझे उसके खुद के खींचे फोटो मुझे भेंट स्वरूप दिए, जिसे मैं आप सबके साथ बाँटना चाहूँगी, वैसे हजारों फोटो आपको गूगल पर मिल जायेंगे पर उनमें मेरी छात्रा का मेरी प्रति स्नेह, सम्मान तो नहीं छलकेगा, जो मेरे लिए अमूल्य निधि है। मैं अपनी भावनाएँ आप तक पहुँचा पाई या नहीं ये तो मालूम नहीं, किन्तु मुझे आप सब अपने बहुत करीब लगे , आज के दिन में अपनी जन्मस्थली को बहुत मिस कर रही हूँ क्योंकि मेरे सारे शिक्षक भी तो वहीं हैं।





























































भावना

24 अगस्त 2010

दिल में छाई उदासी..

आज रक्षाबन्धन है सभी इस पर्व पर खुशियाँ मना रहे होंगे, मनानी भी चाहिए, लेकिन कुछ दिल ऐसे भी हैं जो आज़ बहुत उदास भी हैं जिनमें मेरे पापा भी हैं उनकी दो बहनें थी दोनों ही उनका साथ छोड़ गई, बहुत याद करते हैं पापा उनको, पर यही तो दुनिया है दुख-सुख साथ-साथ चलते है। कुछ भाई अपनी बहनों से दूर परदेस में हैं, उनमें मेरा परिवार भी है जो यहाँ इतनी दूर है, इस पर्व पर उनका याद आना स्वाभिक भी है, माँ भी हर त्यौहार पर अपने बेटे का रास्ता देखती है, इसी को थोड़ा सा हाइकु के माध्यम से मैंने और रामेश्वर जी ने कहने का प्रयास किया है, शायद पंसद आए, अगर आए तो हौसला जरूर बढाइये।

बहुत-बहुत आभार

इस पर्व की बहुत सारी शुभकामनाएँ

नेह की गली
मन में खिली अब
आस की कली ।
R

आस की कली
ना मुरझाये कभी
ना, सूनी गली। B

नेह तुम्हारा
तोड़ बँधन सब
खींच ही लाया । B

न टूटे कभी
आशाओं की कलियाँ
आरज़ू यही । B

तुमको देखा
मिट गई मन से
चिन्ता की रेखा । R

परदेस में
जब याद तू आई
बड़ा रुलाई । B

चिन्ता ने तुम्हें
बना दिया बीमार
मेरे कारण। B

जाँऊगा नहीं
छोड़कर आँचल
माँ तेरा कभी। B

Bhawna

11 अगस्त 2010

हो गए पूरे ४ साल...आइये केक कर रहा है इंतज़ार...






केक आप सबके लिए...

अपना ही केक है, अपने घर में, चिन्ता मत कीजिए नुकसान नहीं देगा...







९ अगस्त २००६ का वो दिन था जब
मैंने अपनी पहली पोस्ट डाली थी यानि की मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था, अब ९ अगस्त को पूरे ४ साल हो गए,पता नहीं कितनी सफलता मिली, पर हॉ एक बड़ा परिवार मिला, मित्र मिले, उनका अथाह स्नेह मिला बस जिंदगी में सबकुछ मिल गया.
आज़ ११ तारीख
हो गई लिखना तो ९ को ही चाहती थी, पर व्यस्तता ने हाथों में हथकडियाँ जो डाल दी थी। आप सबके बिना सेलिब्रेशन भी कैसा? अब तो देश भी बद गया अब युगांडा ने आस्ट्रेलिया की जगह जो ले ली और यहाँ आये भी १ साल कैसे बीत गया पता नहीं चला। आप लोगों का स्नेह यूँ ही बना रहा तो कुछ न कुछ नया तो लेखन में आता ही रहेगा। अभी तो दो ही पुस्तक निकली हैं आगे जल्दी ही २ पुस्तक प्रकाशित करने का प्लान है देखिए कब तक सफलता मिलती है।



मैं और मेरी छोटी बेटी ऐश इंडियन रेस्टोरेंट में गए थे खाना खाने ....उसके बाहर का फोटो.... सूरज की किरणों ने हमारा कैसा श्रृंगार किया है देखिए..... है ना कमाल......







भावना

9 अगस्त 2010

दो मुँह वाला कछुआ...

अरे ये दो मुँह वाला कछुआ तो बहुत ही प्यारा है देखो तो कितने सारे लोगों की निगाहें इसको कितने प्यार से निहार रहीं हैं काश !मैंने भी इसे देखा होता यही मलाल हो रहा है ...





















अरे क्या देख रहे हो भाई मैंने मुंह साफ किया है ...













बहुत थक गया हूँ ...आराम करना चाहता हूँ ...चलिए इन महाशय का हाथ ही सही ...
बड़े प्यार से लिटाये हैं ...














चलना होगा ...दूसरे बच्चों से भी तो मिलना है ना...













बहुत तेज भूख लगी है ...आज पत्ते से ही काम चलता हूँ ...















अरे !ये तो बहुत स्वाद है
...












अरे रुको फोटो ले रहे हो

तो जरा पोज तो बनाने दो ...








Bhawna

3 अगस्त 2010

अनुभूति में...

कमल पर कुछ हाइकु अनुभूति में भी प्रकाशित हुए हैं पढ़कर प्रतिक्रिया दीजिएगा आपकी प्रतिक्रिया ही हौसला बढ़ाती है।

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/kamal/bhawna_kunwar.htm


-

देखी चाँदनी

आँचल सँवारती

खिले कमल।
-

खुश तालाब

कमलों की बारात

सच या ख्वाब।

-

सुबके झील

दिलासा देता हुआ

देखो कमल।
-

बार-२ नहाए

शैतान सा कमल

झील शर्माए।

-

कमल पर

बिखरे पड़े हीरे

चमचमाते।

भावना

22 मार्च 2010

एक बीज ...

लीजिए जनाब अब पर्थ से वापसी हो गई है सिडनी में, अपने परिवार के बीच, अब यहाँ आकर फिर वही जिंदगी पहले की तरह ...
कभी-कभी दिल कुछ इस तरह भी सोचता ...आप लोग भी देखियेगा उदासी जरूर है... पर ऐसा होता भी है ना... आप लोगों की राय बहुत कीमती है ...

एक बीज
मैंने बोया
छोटे से
टीन के डब्बे में...
गमला खरीद सकूँ
हैसियत न थी...
अंकुर फूटा
मेरा चेहरा खिल उठा
मैं उसे प्यार से सींचती रही
अब वो पौधा बन चुका था ...
मगर ये क्या?
ये अचानक मुरझाने लगा
मेरा दिल काँप उठा
मैं देख नहीं सकती थी
उसे इस तरह मरते हुए ..
आनन-फानन में
खरीद डाला मैंने
एक बड़ा बगीचे वाला घर ...
क्या करती उन आभूषणों का
जो बहुत दिन से
बन्द पड़े थे अलमारी में ...
मैंने पौधे को
मुक्ति दिला दी
उस टीन के टूटे-फूटे डिब्बे से ...
रोप दिया उसे
बड़े बगीचे में
पौधा मुस्करा उठा
लहलहाने लगा, झूमने लगा ...
अनदेखा किया मैंने
डब्बे की दयनीय स्थिति को
लचीला पौधा अब
बलिष्ठ पेड़ बन चुका था
बड़ी-बड़ी शाखायें
मजबूत तना
बहुत सारी पत्तियां
जिसने पूरे घर को
अपनी शाखाओं से
जकड़ कर
धराशायी कर दिया
सीना ताने
अपने मद में चूर
अहं की चादर लपेटे
शान से खड़ा है...
मैं निरीह सी
सड़क पर चल पड़ी
भूखी प्यासी
तूफानी रात में
भटकती रही
आज भी भटक रही हूँ ...
खोजने उस डब्बे को
ताकि माफी माँग सकूँ उससे ...
जिसकी पीड़ा जानकर भी
किया था अनदेखा मैंने
जानती हूँ
ये उसी की आह थी
जो लगी थी मुझे ...

Bhawna

28 फ़रवरी 2010

शुभकामनाएँ...

आप सबको दिल के दरमियाँ की ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
भावना कुँअर

12 फ़रवरी 2010

बस यूँ ही...

मित्रों काफी दिनों से आप लोगों से वार्तालाप नहीं हुई, व्यस्तता ही इतनी रही,लिखा तो इन दिनों बहुत पर पोस्ट नहीं कर पाई,किन्तु अब ऐसा नहीं होगा, जो लिखा सभी अब क्रम से पोस्ट किया जायेगा, आप सबका स्नेह और दुआएं ही मेरी प्रेरणा रहें हैं।


कल मेरा जन्मदिन है और मैं यहाँ (आस्ट्रेलिया-पर्थ) में अकेली हूँ बच्चे और प्रगीत आस्ट्रेलिया-सिडनी में हैं,सबको बहुत मिस कर रही हूँ, पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं मम्मा,पापा यहाँ तक कि बच्चों,प्रगीत सभी से दूर हूँ, पर किया जाये जब काम करना है तो करना ही है उसमें ये सब दूरियाँ तो सहनी ही होंगी,ऐसे वक्त में बस यही कह सकती हूँ

आज मन
कुछ अनमना सा है...
सब कुछ होते हुए भी
कुछ कमी सी ...
मिल रहा है
मेरे सपनों कों
एक साकार रूप ...
जिन सपनों को
टूटते, बिखरते से
बचाया था मैंने
फिर दिया ...
एक मुकम्मल मुकाम
तो फिर आज ...
ये उदासी मुझे
क्यूँ बींध रही है?
क्यूँ आज इन ओठों से
हँसी की जगमगाहट
धुँधली पड़ गई है?
क्यूँ दिल की धड़कन में
हलचल नहीं है?
और क्यूँ
मेरी इन आँखों में...
ठहरी हुई
ये नमी सी है?
हाँ जानती हूँ मैं
मेरी साँसों को
प्रवाह देने वाले
मेरे जीवन साथी
वो तुम ही हो ...
जिसकी
हर पल, हर लम्हा
इन धड़कनों में
कमी सी है ...

भावना कुँअर