29 नवंबर 2008

शहीदों को शत-शत नमन...

कफन में लिपटे…
अपने बेटे को देख !
माँ का कलेज़ा फट पड़ा !
आँसू आँख से नहीं
दिल से बहे थे…
ऊँगलियाँ थी कि…
उसके चेहरे से
नहीं हटती…
मुँह से बस यही
आवाज़ निकली !
वाह मेरे लाल !
मुझे नाज़ है तुझ पर
बचा लिया तूने कितनी ही…
माँ की गोद को उज़ड़ने से…
बचा लिया तूने कितनी ही…
पत्नियों के मांग का सिंदूर…
किसी पिता का दुलार !
किसी घर का अकेला चिराग !
जो नहीं बच सके उनके लिये …
रोता है मेरा दिल…
मेरे लाल !
तू फिर आना…
अगले जन्म में भी तू
मेरी ही कोख से जन्म लेना…
फक्र है मुझे तुझ पे !
Dr.Bhawna

27 नवंबर 2008

क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

चित्र - साभार - NDTV 24x7


यही हैं वो दरिंदे जो बोट पर सवार होकर आये और मासूम लोगों का खून बहाने में जरा भी नहीं हिचके। ये दिल दहला देने वाले मंजर जो आँखों में बस गये हैं क्या कसूर था उन मासूमों का जिनका खून बहाया गया?

Dr. Bhawna

26 नवंबर 2008

सिलसिला…

आज़ सुबह जैसे ही टी०वी० खोला सबसे पहली खबर सुनने में आई एक नवजात बच्ची को मुम्बई के माँ बाप ने डस्टबिन में डाल दिया ये सुनते ही दिल दहल गया भावनाएँ उमड़ पड़ी उस बच्ची के लिए ….पिछले हफ्ते दिल्ली की भी ऐसी एक खबर पढ़ने में आई थी जिन्होंने अपनी बच्ची को फुटपाथ पर छोड़ दिया था ना जाने कब रुकेगा ये सिलसिला…


क्यूँ है मेरे हिस्से में
सिर्फ कचरे का डिब्बा !
क्यूँ नहीं माँ का आँचल !
पिता का दुलार !
ऐसा करते हुए
क्यूँ नहीं काँपते हाथ !
क्यूँ नहीं धड़कता दिल !
क्यूँ नहीं तड़पती आत्मा !
ऐ ! मुझे यूँ मारने वाले सुनो !
तुम तो मुझसे पहले मर चुके हो
तुम भला मुझे क्या मारोगे
भावनाओं से शू्न्य
तुम्हारा दिल बन चुका है
माँस का लोथड़ा
जिसे खायेगी
तुम्हारा दिल अब बन चुका है
माँस का लोथड़ा
जिसे खायेगी
तुम्हारी ही आत्मा
नोंच-नोंचकर
अभी जरा वक्त है…
एक दिन आयेगा
जब तुम्हें देना होगा
इस गुनाह का हिसाब
मेरा क्या !
मुझे तो मिल गई मुक्ति
तुम्हारे जैसे इन्सानों की दुनिया से
डॉ० भावना कुँअर

18 नवंबर 2008

नहीं उसके सिवा तेरा कोई, ये याद कर ले...

लीजिये आप सबके स्नेह के कारण अम्माजी की लिखी एक ओर ग़ज़ल...
नहीं उसके सिवा तेरा कोई, ये याद कर ले
खुदा की याद से तू अपना दिल आबाद कर ले।

न उसको याद रखना, करना है बर्बाद खुद को
कहीं ऐसा न हो तू खुद को यूँ बर्बाद कर ले।

अगर फ़रियाद सच्चे दिल की हो, सुनता है मालिक
तू सच्चे दिल से उससे, चाहे जो फ़रियाद कर ले।

जो उससे बँध गया, हर ओर से आज़ाद है वो
तू अपने आपको हर ओर से आज़ाद कर ले।

कोई तो काम इस दुनिया में ऐसा करके जा तू
कि जिससे दुनिया तुझको याद तेरे बाद कर ले।
लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना

10 नवंबर 2008

प्रेम का पाठ

प्रिय पाठकों आज मैं आप सबके लिये अपनी मातृतुल्य संतोष कुँअर जी की एक रचना लेकर आई हूँ आशा है आप सबको पंसद आयेगी।
मम्मी जी को लिखने का बचपन से ही शौंक है। बाल-कविताएँ एवं कहानियाँ उनकी खास पंसदगी हैं। उनकी "प्यारे बच्चे प्यारे गीत" पुस्तक बच्चों को बहुत लुभाती है, अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ और बाल-गीत छपते रहते हैं आज़ भी वे लगातार लिख रहीं हैं मैं जब भारत उनके पास गई तो मैंने असंख्य कहानियाँ और बाल-गीत उनके पास देखे जिनको मैं अपने साथ लाने से ना रह पाई और जो भी मैंने अपनी इस बार की भारत यात्रा पर पाया उस सबको अपने मित्रों के साथ बाँटना भी चाहा शायद आप लोगों का स्नेह ही मुझे ऐसा करने को प्रेरित करता है ये रचना शायद बच्चों को पंसद आये इसी आशा में… शीर्षक है …


प्रेम का पाठ
मोहन-सोहन हैं दो भाई
उनमें होती बहुत लड़ाई
एक बार मामाजी आये
साथ कई गुब्बारे लाये
सूखे-सूखे, गीले-गीले
लाल-हरे और नीले-पीले
मोहन बोला-'सिर्फ मुझे दो।'
सोहन बोला-सिर्फ मुझे दो।'
छीन-झपट में इतने सारे
फूट गये प्यारे गुब्बारे
मामा ने तब यह समझाया
और प्रेम का पाठ पढ़ाया-
'वो जो बात-बात पर लड़ता
बना बनाया काम बिगड़ता।
संतोष कुँअर

5 नवंबर 2008

बहुत सारी मीठी-मीठी यादों के साथ भारत यात्रा से वापसी...

मधुर यादों के साथ सपरिवार भारत लौटे, उन्हीं यादों में से कुछ यादें आप सब लोगों के साथ बाँटना चाहूँगी।
सबसे पहले बात करते हैं अम्माजी की जी हाँ हम उन्हें अम्माजी का सम्बोधन देते हैं क्यों? क्योंकि हमारे श्वसुर जी भी उनको अम्माजी जो कहते हैं अम्माजी जानी-मानी लेखिका, कवयित्री,शायरा, सितार वादिका, कला में पारंगत और भी ना जाने कितनी खूबियों की धनी हैं हमारी अम्माजी। जिनका पूरा नाम लीलावती बंसल है जो गाज़ियाबाद में रहती हैं ,उम्र है ९० खूब लिखती पढ़ती हैं किन्तु चलने में अब थोड़ा परेशानी है तो क्या हुआ लेकिन हौंसले तो बहुत बुलन्द हैं। कितने ही साल अमेरिका में रहने के बाद अपने वतन में वापिस आ गयी हैं अपने पतिदेव के साथ। बाकी सभी बेटे बहुएँ अमेरिका में हैं। अम्माजी कम्यूटर पर काम नहीं कर सकतीं मैं उनकी रचनाओं को आप सबके सामने लाना चाहती हूँ शायद आप सबको अच्छा लगे। उनकी किताबों की संख्या बहुत है जिसकी चर्चा अगली पोस्ट में करेंगे तब तक आप उनकी लिखी एक गज़ल का आन्नद लीजिये…

लीलावती बंसल जी की एक
गज़ल
माना कि कुछ नहीं हूँ मैं,लेकिन भरम तो है
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।

दौलत खुशी की मुझपे नहीं है तो क्या हुआ
मुझपे मगर ये मेरा ख़ज़ाना-ए-गम तो है।

माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।

पूछा उन्होंने हाल तो कहना पड़ा मुझे
शिद्दत ग़मे-हयात की थोड़ी-सी कम तो है।

चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
प्रस्तुतकर्त्ता - भावना कुँअर