19 सितंबर 2006

मुम्बई बम ब्लास्ट



मुम्बई में १० जुलाई २००६ को हुए बम ब्लास्ट पर कुछ हाइकुः


तिथि १० जुलाई २००६

मुम्बई शहर में

हुयी बर्बादी।


इन्सान ने ही

उडाई हैं धज्जियाँ

इन्सान की ही।


तेज था बडा

वो बम का धमाका

ट्रेन में आज।


जलती लाशें

रोते लोग दर्द से

असहनीय।


आसमान में

काला सर्प सा धुआँ

फन फैलाए।


दर्दनाक था

सदमें का असर

मिटा ही नहीं।

डॉ० भावना कुँअर

10 सितंबर 2006

मजबूर गरीब


दुःखों की बस्तियों में तो, बस आँसू का बसेरा है
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है।


वो देखो जी रहें हैं यूँ, न रोटी है न कपडा है
उन्हें मायूसियों के फिर, घने जंगल ने घेरा है।


नहीं रुख्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोडा है
ये आँखे राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है।

नजर आती नहीं कोई, किरण उम्मीद की उनको
मगर सेठों के घर में तो, सवेरा ही सवेरा है।


मिले कोई तो अब उनको, जो समझे हाले दिल उनका
न छेडो ये तराना तुम, ये मेरा है ये मेरा है।

डॉ० भावना

7 सितंबर 2006

माँ

आज मेरी माँ का जन्मदिन है।मैंने एक रचना उनके लिए लिखी है जो आप सबके साथ बाँट रही हूँ। रोजी रोटी के लिए अपने वतन से दूर हूँ जन्मदिन पर जा भी नहीं सकती चैट कर सकती हूँ, फोन कर सकती हूँ और वैब कैम पर देख सकती हूँ, पर इतने सब से मन कहाँ मानता है क्योंकि माँ से बढकर इस दुनिया में है ही क्या माँ तो सबको ही प्यारी होती है...





माँ मुझे भी प्यारी है, माँ तुम्हें भी प्यारी है

माँ इस दुनिया में, सबसे ही न्यारी है।


बचपन में ऊँगली पकडकर,चलना सिखाया था हमको

आज उन हाथों को, थामने की बारी हमारी है।


माँ मुझे भी प्यारी है, माँ तुम्हें भी प्यारी है

माँ इस दुनिया में, सबसे ही न्यारी है।


जो अनेक प्रयत्नों के बाद, खिला पाती थी रोटी के टुकडे

अब थके हुए उन हाथों को, ताकत देने की बारी हमारी है।


माँ मुझे भी प्यारी है, माँ तुम्हें भी प्यारी है

माँ इस दुनिया में, सबसे ही न्यारी है।


कदम से कदम मिलाकर, चलना सिखाया था जिसने

उन लडखडाते कदमों को, सहारा देने की बारी हमारी है।


माँ मुझे भी प्यारी है, माँ तुम्हें भी प्यारी है

माँ इस दुनिया में, सबसे ही न्यारी है।


रातभर जागकर भी, हमें मीठी नींद सुलाया था जिसने

उन खुली आँखों की, थकन मिटाने की बारी हमारी है।


माँ मुझे भी प्यारी है, माँ तुम्हें भी प्यारी है

माँ इस दुनिया में, सबसे ही न्यारी है।
डॉ० भावना

3 सितंबर 2006

बूँद

जब आँख से छलकी


तो आँसू बन गई



गिरी बादल से

तो बरखा बन गई



जब पत्तों से खनकी


तो मोती बन गई



गिरी परिश्रम से


तो पसीना बन गई



जब केश से गिरी


तो गंगा बन गई
डॉ० भावना