3 अगस्त 2012

कुछ मन की बात...


हमारे यहाँ तो राखी होती नहीं है। बचपन में हम बहुत रोया करते थे, जब सब बहनें अपने  भाइयों को राखी बाँधा करती थी और हम चुप खड़े देखा करते और फिर फूट-फूट कर रोया करते, हमारे भाई में बहुत उदास, आँखों में टिमटिमाते आँसुओं से बस हमको देखा करते, हम बच्चे करते भी तो क्या, धीरे-धीरे वक्त गुज़रा हम समझदार हुए और जाने कि हमारे यहाँ राखी क्यों नहीं मनाई जाती, पर आज भी ये त्यौहार आता है तो मन में बड़ी हलचल सी मच जाती है, आँखे कहीं स्थिर सी हो जाती हैं-


छाए उदासी
मन बने है पाखी
देखे जो राखी।






मैं जब देखूँ
धागों सिमटा प्यार
आँसू सँवारुँ।






मेरे पतिदेव के यहाँ राखी का  त्योहार  मनाया जाता है, वो परदेस में अपनी बहन द्वारा भेजी राखी देखकर प्रफुल्लित हो उठते हैं। मेरी बेटियों ने जब से होश सँभाला मैंने उन दोनों को मेरी तरह कभी उदास नहीं होने दिया वो दोनों एकदूसरे को राखी बाँधती हैं और बहुत खुश होती हैं और अपने पापा के लिये तो वो खुद राखी बनाती हैं कल भी कुछ ऐसा ही हुआ उनका ये प्यार देख मेरी कलम ने कुछ हाइकु लिख डाले जो आप सबके साथ बाँटती हूँ-







राखी जो आई
छोटी-छोटी खुशियाँ
संग में लाई।





मेल मिलाती
मोती और धागों का
स्नेह सजाती।


नन्हें से हाथ
मोतियों से सजाते
पापा का हाथ।




खुशी से झूमे
बिटिया का मस्तक
पापा जो चूमे।





राखी में छिपी
मधुर सी मुस्कान
जी भर खिली।



सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ...


Bhawna