26 जनवरी 2012

.फूलों जैसा मेरा देश,वतन से दूर


अपनी दो पुरानी रचनायें आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूँगी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ...
















फूलों जैसा मेरा देश


फूलों जैसा मेरा देश मुरझाने लगा
शत्रुओं के पंजों में जकडा जाने लगा
रात-दिन मेरी आँखों में एक ही ख्वाब
कैसे हो मेरा 'प्यारा देश' आजाद
कैसे छुडाऊँ इन जंजीरों की पकड से इसको
कैसे लौटाऊँ वापस वही मुस्कान इसको
कैसे रोकूँ आँसुओं के सैलाब को इसके
कैसे खोलूँ आजादी के द्वार को इसके
कैसे करूँ कम आत्मा की तड़प रूह की बेचैनी को
चढ़ जाऊँ फाँसी मगर दिलाऊँगा आजादी इसको
ये जन्म कम है तो, अगले जन्म में आऊँगा
पर देश को मुक्ति जरूर दिलाऊँगा। 
जो सोचा था कर दिखलाया
भले ही उसको फाँसीं चढ़वाया
शहीद भगत सिंह नाम कमाया
आज भी सब के दिल में समाया।


वतन से दूर

वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बसती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती।


बसी है अब भी साँसों में
वो सौंधी गंध धरती की
मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में
दुआ रब से यही करती।


बड़े ही वीर थे वो जन
जिन्होंने झूल फाँसी पर
दिला दी हमको आजादी।
नमन शत-शत उन्हें करती।


Bhawna

10 जनवरी 2012

ताँका ( हिन्दी चेतना -जनवरी- मार्च)

हिन्दी चेतना जन-मार्च-12

हिदी चेतना का जनवरी -मार्च अंक यहाँ से डाउनलोड किया जा सकता है ।


4 जनवरी 2012

"सच बोलते शब्द" में मेरे भी कुछ शब्द ...



"सच बोलते शब्द" राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी जी के सम्पादकत्व में यह दूसरा संकलन है। प्रथम संस्करण "कुछ ऐसा हो" आप लोग पढ़ ही चुके हैं। "सच बोलते शब्द" में भी मेरे हाइकु प्रकाशित हुए हैं मैं राजेन्द्र जी का आभार व्यक्त करते हुए आप लोगों के साथ ये हाइकु शेयर करना चाहती हूँ आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा...
















































Bhawna