12 नवंबर 2012

असंख्य दीए सभी मेरे अपनों के जीवन में अखंड ज्योति की तरह जगमगाएँ इन्हीं शुभकामनाओं के साथ-


लो गई  एक और दीपावली, कुछ खट्टीमीठी, पुरानी यादों को लेकर जुड़े होंगे कुछ दिल पिछली दीपावली, तो कुछ टूटे भी  होंगे,कुछ बिछड़े होंगे तो कुछ मिलें भी होंगे,कहीं खूब जगमगाएँ होंगे कुछ दिए, तो कहीं टिमटिमाएँ भर होंगे, उन्हीं जज्बों को ले कुछ दीए "दिल के दरमियाँ" द्वारा  कुछ ऐसे-

सेदोका के दीए

सूखा दीपक
भरा था लबालब
तुम्हारी ही यादों से
जो जल उठा
सँभाला जिसे वर्षों
बड़े ही जतन से।
 

रोशन होता
एक और दीपक
इस दीपावली में
हवा का झोका
उड़ा ले गया संग
जाने क्यूँ बेख्याली में।


मिलके साथ
हमने थे सजाए
प्यार की रोशनी से
हजारों दीए
समेटतें हैं अब
किरचों को दर्द की।

डॉ० भावना कुँअर