25 जनवरी 2009

रूह की बेचैनी


फूलों जैसा मेरा देश मुरझाने लगा
शत्रुओं के पंजों में जकडा जाने लगा
रात-दिन मेरी आँखों में एक ही ख्वाब
कैसे हो मेरा 'प्यारा देश' आजाद
कैसे छुडाऊँ इन जंजीरों की पकड से इसको
कैसे लौटाऊँ वापस वही मुस्कान इसको
कैसे रोकूँ आँसुओं के सैलाब को इसके
कैसे खोलूँ आजादी के द्वार को इसके
कैसे करूँ कम आत्मा की तडप रूह की बेचैनी को
चढ़ जाऊँ फाँसी मगर दिलाऊँगा आजादी इसको
ये जन्म कम है तो, अगले जन्म में आऊँगा
पर देश को मुक्ति जरूर दिलाऊँगा।

जो सोचा था कर दिखलाया
भले ही उसको फाँसीं चढ़वाया
शहीद भगत सिंह नाम कमाया
आज भी सब के दिल में समाया।



वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बसती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती।


बसी है अब भी साँसों में
वो सौंधी गंध धरती की
मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में
दुआ रब से यही करती।


बड़े ही वीर थे वो जन
जिन्होंने झूल फाँसी पर
दिला दी हमको आजादी।
नमन शत-शत उन्हें करती।


Dr.Bhawna

21 जनवरी 2009

दांस्ता...

धड़कता रहा
लफ़्जों का सीना
रात भर,
सिसकती रही
कलम भी,
कागज़ भी न दे पाया
अपना हाथ,
चाँद ने भी
करवट ले ली,
ओढ़ ली काली चादर
रोशनी ने,
तारों ने भी
फेर ली अपनी आँखें,
पिघलता रहा आसमां
मोम की मानिंद,
थरथराते रहे
रात्रि के होठ,
तो फिर!
कैसे लिखता वो
दर्दे दिल की दांस्ता?
डॉ० भावना