26 फ़रवरी 2009

दो गहरे साये ...

झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता
लहरों में उठते
तूफानों से बेखबर
अपनी हसीन
दुनिया में व्यस्त
इक दूजे को
पूर्ण समर्पित।
मैं रोज सुबह उठता
अखबार पढ़ता
और इसी झील के किनारे आता।
उन सायों से
मेरा एक रिश्ता
बहुत घनिष्ट रिश्ता
बन गया।
बन गये वो भी
मेरी जिंदगी के अहं हिस्से।
रोजमर्रा की तरह
आज भी उठा
अखबार पर नजर दौडाई
पर हटा न सका
दहल गया खबर पढ़कर
झील में जोरों का तूफान जो आया था
बेतहाशा दौडा
झील के किनारे
पर वो किनारा
अब तहस-नहस हो चुका था
बर्बादी का आलम था
और
और वो दोनों साये
एक दूजे का हाथ थामें
खामोश पडे थे
जैसे कि रात और दिन
सदियों बाद मिलें हों
ऐसी खामोशी
जो अब कभी नहीं टूटेगी।
मैं बुत बना देखता रहा
सोचता जाता
कौन थे?
कहाँ से आते थे?
नहीं जान पाया इस रहस्य को
हाँ जाना बस इतना
निभाया साथ दोनों ने
आखिरी साँस तक
जो अब नहीं
निभाता कोई।

डॉ० भावना

24 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति. धन्यवाद इस रचना के लिये.

Anshu Mali Rastogi ने कहा…

एक भावनात्मक कविता।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!!! सुन्दर भाव प्रवाह !!!

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता
लहरों में उठते
तूफानों से बेखबर
प्रभावी अभिव्यक्ति. धन्यवाद इस रचना के लिये.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत एह्साह है इस रचना में..........
कई रिश्ते अनजाने ही बन जाते हैं, बिना बोले, बिना कहे,

ऐसे ही रिश्ते में बंधे ....एक और रिश्ते की कहानी को सुन्दर लफ्जों में बांधा है आपने
सुन्दर अभिव्यक्ति

अखिलेश सिंह ने कहा…

शानदार अभिव्यक्ति ....

रंजना ने कहा…

वाह ! बहुत ही सुन्दर मनोहारी भावभरी रचना....

Vinay ने कहा…

बहुत ही मनभावना कविता!

kumar Dheeraj ने कहा…

झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता

आपने जो प्रसंग छेड़े है उसे मै समझता हूं । बेहद रोचक है...पढ़कर लगा कि पढ़ते ही रहूं । आपके शब्दों के जाल ने इसे और भी रोचक बना दिया है । शुक्रिया

के सी ने कहा…

उत्तर आधुनिक कविता बन गयी है , क्यों है न ?

Mohinder56 ने कहा…

रचना सुन्दर है मगर आपको ब्लोगा का कलर कम्बीनेशन गडबड है.. साफ़ साफ़ पढा नहीं जाता... इसके बारे में कुछ करें

रंजू भाटिया ने कहा…

कुछ रिश्ते यूँ ही साथ चलते हैं ..बहुत अच्छी प्रभावशाली लगी आपकी यह रचना .

अनिल कान्त ने कहा…

भाव विभोर हो गया ...प्रभावशाली रचना

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

डॉ .अनुराग ने कहा…

झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता

सच मानिए .....आपने जो महसूस किया है ओर उसे शब्द दिए है ,आपकी बेहतरीन अभिव्यक्तियों में से एक लगी मुझे...शुरूआती लाइने पढ़कर गुलज़ार की एक नज़्म याद आ गयी थी

kaptan ने कहा…

nihayati khubsurat.....

बेनामी ने कहा…

nihayt khubsurat kalam he.....

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुदर रचना लिखा ..

pallavi trivedi ने कहा…

just beautiful...very beautiful.

ilesh ने कहा…

समर्पित भाव दिल के कभी मायूस नही करते,समर्पित प्यार कभी एक दूजे से जुदा नही करता,यही तो प्यार हे बस साथ निभाते चलो आखरी साँस तक....सलाम बेहद गहरी और भावपूर्ण रचना के लिए....

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

achhi rachna hai Bhawna g

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

भावना जी ,
आपने बहुत अच्छे मानसिक भावों ,अंतर्द्वंद्व को बखूबी सरल शब्दों में अभिव्यक्ति दी है .
पूनम

अभिन्न ने कहा…

प्रेम भावः से पूर्ण कविता
झील के उस पार
दो गहरे साये
कभी घटते से
कभी बढ़ते से
मैं अक्सर देखा करता
लहरों में उठते
शब्द शिल्प का अनूठा संगम
रोचकता से परिपूर्ण रचना .डॉ साहिबा को साहित्यिक नमन

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,धन्यवाद इस रचना के लिये.