22 मार्च 2010

एक बीज ...

लीजिए जनाब अब पर्थ से वापसी हो गई है सिडनी में, अपने परिवार के बीच, अब यहाँ आकर फिर वही जिंदगी पहले की तरह ...
कभी-कभी दिल कुछ इस तरह भी सोचता ...आप लोग भी देखियेगा उदासी जरूर है... पर ऐसा होता भी है ना... आप लोगों की राय बहुत कीमती है ...

एक बीज
मैंने बोया
छोटे से
टीन के डब्बे में...
गमला खरीद सकूँ
हैसियत न थी...
अंकुर फूटा
मेरा चेहरा खिल उठा
मैं उसे प्यार से सींचती रही
अब वो पौधा बन चुका था ...
मगर ये क्या?
ये अचानक मुरझाने लगा
मेरा दिल काँप उठा
मैं देख नहीं सकती थी
उसे इस तरह मरते हुए ..
आनन-फानन में
खरीद डाला मैंने
एक बड़ा बगीचे वाला घर ...
क्या करती उन आभूषणों का
जो बहुत दिन से
बन्द पड़े थे अलमारी में ...
मैंने पौधे को
मुक्ति दिला दी
उस टीन के टूटे-फूटे डिब्बे से ...
रोप दिया उसे
बड़े बगीचे में
पौधा मुस्करा उठा
लहलहाने लगा, झूमने लगा ...
अनदेखा किया मैंने
डब्बे की दयनीय स्थिति को
लचीला पौधा अब
बलिष्ठ पेड़ बन चुका था
बड़ी-बड़ी शाखायें
मजबूत तना
बहुत सारी पत्तियां
जिसने पूरे घर को
अपनी शाखाओं से
जकड़ कर
धराशायी कर दिया
सीना ताने
अपने मद में चूर
अहं की चादर लपेटे
शान से खड़ा है...
मैं निरीह सी
सड़क पर चल पड़ी
भूखी प्यासी
तूफानी रात में
भटकती रही
आज भी भटक रही हूँ ...
खोजने उस डब्बे को
ताकि माफी माँग सकूँ उससे ...
जिसकी पीड़ा जानकर भी
किया था अनदेखा मैंने
जानती हूँ
ये उसी की आह थी
जो लगी थी मुझे ...

Bhawna

24 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

Bhagwaan na kare aapko kisiki aah lage!

M VERMA ने कहा…

चलो डिब्बे की कायनात बड़ी हो गयी.
पर जिस गहराई से आपने पीड़ा को महसूस की है वाह ----

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

bijnior district ने कहा…

बहुत शानदार रचना,आपने डिब्बे के माध्यम से वह कह दिया जोशाब्द नही कह पाते।
अशोक मधुप

Jyoti Verma ने कहा…

sundar kriti!


:-)

अपने लब्जों को जुबान पर लादे क्यों है
क्या करे ज़माने ने होठों को खुलने न दिया

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

teen ke dibbe ke jariye bahut hi gahari baatkahi hai aapne,behad pasand aaya.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

jis cheej ko ham falatu samajh kar thokar marate hai waqt aane par apani galti ka ahsas hame hota hai,tab jab uski ahmiyat pata chalti hai.

Bhaskar ने कहा…

सुन्दर रचना भावना जी,पर साफ पढ़ने में दिक्कत होती है ,कृपया ब्लॉग लेआउट में बदलाव करें तो आपकी मेहनत ज्यादा साफ नजर आएगी

सहज साहित्य ने कहा…

भावना जी , यही जीवन का सत्य है । जिसे मुक्ति दिलाते हैं , वही कुछ समय बाद हमारी आँख में उँगली डालकर कहता है- तुम गलत हो । पेड़ ने वही किया । फिर भी इतना निराश होने की ज़रूरत नहीं। अभिव्यक्ति की सूक्षमता और अर्थ की गहनता मन को छू गई ।जीवन का ताप इस कविता को श्रेष्ठता की श्रेणी में रखता है। मैं तो यही कहूँगा -कभी जीना है / कभी मरना है /इतना ही कहना है /निश -दिन बहना है/जीवन तो बस इक झरना है।

समीर ने कहा…

इस कविता को जितनी बार पढ़ रहा हूँ, उतनी बार एक नये मायने दे रही है...


कभी वो डिब्बा बेबस माँ की कोख नज़र आता है और कभी वो पेड़, एक ऐसी संतान, जिसने घर बर्बाद कर दिया और लाचार माँ को भटकने के लिए छोड़ दिया...


जिस माँ ने अपना सर्वस्व, जेवर गहने सब इस संतान की तरक्की पर लुटा दिया हो और आज वही संतान घर उजाड़ गया, कितनी बेबसी और लाचारी झलक रही है रचना में...


बहुत जबरदस्त गहराई है इस रचना में.

समीर

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

आज भी भटक रही हूँ ...
खोजने उस डब्बे को
ताकि माफी माँग सकूँ उससे ...
जिसकी पीड़ा जानकर भी
किया था अनदेखा मैंने
जानती हूँ
ये उसी की आह थी
जो लगी थी मुझे ..
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.

mridula pradhan ने कहा…

atyant khoobsurat rachna.

kshama ने कहा…

Aah ! Nishabd hun..

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

शमा जी, वर्मा जी, सुमन जी, अशोक जी, ज्योति जी, पूनम जी, चिराग जी, भास्कर जी, वन्दना जी, मृदुला जी, शमा जी आप सबने रचना को सराहा अच्छा लगा यानि की मेहनत वसूल जाब लेखक किसी वस्तु के माध्यम से कुछ कहना चाहता है और पाठक उसे समझ लेता है तो लेखन की लेखनी सफल हो जाती है मैं आप सबकी टिप्पणी पाकर खुद को सफल समझने की गलती शायद नहीं कर रही। आप सबका दिल से आभार
समीर जी आपने तो पूरा ही अर्थ खोलकर सामने रख दिया सच कहा आपने मैंने इस रचना में यही संदेश देना चाहा था जो कि एक माँ ने भुगता मैं उस माँ को जानती हूँ जिस पर ये बीती, उसने अपने बच्चे के लिए क्या नहीं किया छोटे से घर में बच्चा खुश नहीं रहता था सबके बड़े घर जो देखता था माँ ने अपना सब कुछ बेच दिया उसको सफल और खुशी देने में बाद में उसी बच्चे ने बड़े होकर उस माँ को ही घर से निकाल दिया बस यह घटना मेरे दिलो-दिमाग को झकझोरे जा रही थी सो उसको शब्दों में ढालने का प्रयास किया आपका बहुत-बहुत आभार जो आप सही बात समझ सके कुछ पाठकों को यह डब्बा ,कचरा बड़ा अजीब लगा क्या कर सकते हैं समझ अपनी-अपनी...

काम्बोज जी आप इतने बड़े व्यक्ति, इतने कामयाब लेखक हैं मैं तो आपकी प्रशंसा पाकर गदगद हो गई आपने और मेरे कुछ पाठकों ने मेरी रचना के भावों समझ लिया मैं आभारी हूँ,जिनको रचना पंसद नहीं आई उनके लिए फिर से लिखूँगी शायद तब कामयाबी मिल जाये...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Bimb ke madhyam se kahi baat ... dard ki gahri chaap choti hai aapki rachn ...

Dr Prakash Moghe ने कहा…

एक मनोविज्ञानिक की दृष्टी से सोचने पर लगता है की हमें अगर शांति पूर्ण जीवन बिताना है तो स्मरंशक्ति तेज करने के बजाय भूलने की क्षमता विकसित करनी चाहिए. हम अतीत से बाहर ही नहीं आ पाते है. एक तरह से अतीत भी एक फ्रेम या बॉक्स है जिसके बाहर जाकर सोचने पर ही सृजन की शुरवात होती है. लिखती रहो....

Rohit Singh ने कहा…

भावना जी...
इतने लोगो ने कविता के मर्म को समझ कर कहा है सो मेरे कुछ कहने को रह ही नहीं जाता है....
मैं डॉक्टर मोघे की बात से इत्तफाक रखता हूं....अगर भूलने की शकि्त नहीं रखी तो दुख हमेशा हमें चीरता रहेगा भावना जी...
पर मां का कलेजा तो मां का ही होता है....मां के कलेजे की कहानी पड़ी थी बचपन में ... याद आ गई...

saurabh ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
सूबेदार ने कहा…

bahut khoob

Hardeep Sandhu ने कहा…

Bhawna ji,
Aap kee rachna bahut khoobsurat hai....dil se likha gya hai har shabad.
Aap ko shayad haranee hogee yah sun kar jab main kahoongee ke aap shandar haiku bhee likhtee hain.
Rameshwar jee ne aap ke kuch haiku padvae.
Maine aap se puche bi hee aap ko Hindi Haiku Parivar mein shamil bhee kar lya.
agar time mile to zaroor ayeeaga Aap ke Aapne blog...
http://hindihaiku.wordpress.com

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

हरदीप जी मैंने आपका बलॉग देखा आपका प्रयास पंसद आया आपको मेरी रचनाएँ पसंद आई उसके लिए आभारी हूँ,
काम्बोज जी मेरे बड़े भाई के समान हैं उनको मेरी रचनाओं पर पूरा हक है।
हाइकु पोस्ट करने के लिये धन्यवाद।

Shabad shabad ने कहा…

Kahee zyada hee vyast ho gayee lagtee ho....Bhawna ji....

अनूप शुक्ल ने कहा…

व्यापक संवेदना है!

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

एक मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाई।