क्या लिखूँ?
समझ नहीं आता
कलम है जो रूक-रूक जाती है...
और आँसू
जो थमने का नाम ही नहीं लेते...
एक हूक सी
मन में उठती है...
और आँसुओं का सैलाब फैलाकर
सिमट जाती है
अपने दायरे में...
नश्तर चुभोती है
और दर्द को दुगना कर
छिपकर एक कोने में बैठ जाती है
अगली बार उठने के लिए...
क्या दर्द की ये लहर
नहीं झिंझोड़ देती
हर माँ का अस्तित्व?
जिनकी नन्हीं जान
दूर हो जाती है उनके कलेजे से...
क्या अनचाहा दर्द
बन नहीं जाता माँ की तकदीर?
क्या जीना मुहाल नहीं हो जाता?
और क्या उसका सपना
आँखों को धुँधला नहीं कर जाता?
कैसे रहती है वो जिंदा
बस वही जानती है...
लोगों का क्या
वो तो सांत्वना देकर
चले जाते हैं अपनी राह...
पर माँ अकेली एकदम तन्हाँ
किसी उम्मीद के सहारे
बिना किसी से कुछ कहे
जी जाती है अपना पूरा जीवन...
Bhawna
14 टिप्पणियां:
जो दर्द आपके हाइकु की शक्ति है , वही आपकी लेखनी की नोक से इस कविता में भी बहुत गहराई से सम्पेषित हो रहा है । माँ के दर्द का अनुवाद नहीं हो सकता ।वह जिस पीड़ा को सहती है , बस वही उसकी गम्भीरता जानती है । बहुत मार्मिक कविता । हार्दिक बधाई !
भावना जी
माँ के दर्द को शब्दों में बाँध कविता में उतार दिया है आपने |
माँ का अनकहा दर्द ...जो वह कभी भी नहीं कहती ..जो माँ की आँखों में दिखता है ...इस कविता में गहराई से बियां किया है आपने|
मार्मिक कविता के लिए बधाई !
एक माँ ही तो है जो दर्द का अथाह सागर अपने सीने में छिपाये शांत सब कुछ भोग लेने की शक्ति रखती है...माँ के दर्द को शब्दों में बहुत गहराई से उतारा है...अत्यंत मार्मिक!!
maa ka darad do din le gahre hamesha rahta hai aapne kavita me bahut achchhi tarah se us dard ko likha hai
bahut hi marmik kavita
rachana
लोगों का क्या
वो तो सांत्वना देकर
चले जाते हैं अपनी राह...
पर माँ अकेली एकदम तन्हाँ
किसी उम्मीद के सहारे
बिना किसी से कुछ कहे
जी जाती है अपना पूरा जीवन...
Aah! Ek maa kee peeda,doosaree maa hee samajh saktee hai...
भावना जी , नमस्कार . बहुत ही शानदार लिखा है...
narendra purohit
माँ कभी अपने लिए नहीं जीती,
अगर जीती तो माँ न होती...
शब्द जहां नि:शेष हो गये
और कलम अटकी लगती है
वही पीर है जो हर दिल में
बिन अबुभूत किये उठती है
कौन उसे कितना पहचाने
ये उसकी क्षमता पर निर्भर
कहाँ अश्रु बन बह जाती है
कहां कली बन कर खिलती है
"maa" anmol hai.........aur apki kavita bhi:)
गहरे भावार्थ से सजी कविता बधाई डॉ० भावना जी
गहरे भावार्थ से सजी कविता बधाई डॉ० भावना जी
पर माँ अकेली एकदम तन्हाँ
किसी उम्मीद के सहारे
बिना किसी से कुछ कहे
जी जाती है अपना पूरा जीवन...
सच कहा ...गंभीर रचना
मार्मिक और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है आपकी.
माँ का दर्द और जज्बात दिल को कचोटते हैं.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
माँ के दर्द को शब्दों में समेटने का बहुत सुन्दर प्रयास ... आपकी कुछ रचनाएँ पढ़ीं ... बहुत अच्छा लगा ..फिर आऊँगी आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाओं से रु ब रु होने ... सुनीता शानू जी का आभार जो आपके ब्लॉग का पता मिला
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