अपनी दो पुरानी रचनायें आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूँगी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ...
फूलों जैसा मेरा देश
फूलों जैसा मेरा देश मुरझाने लगा
शत्रुओं के पंजों में जकडा जाने लगा
रात-दिन मेरी आँखों में एक ही ख्वाब
कैसे हो मेरा 'प्यारा देश' आजाद
कैसे छुडाऊँ इन जंजीरों की पकड से इसको
कैसे लौटाऊँ वापस वही मुस्कान इसको
कैसे रोकूँ आँसुओं के सैलाब को इसके
कैसे खोलूँ आजादी के द्वार को इसके
कैसे करूँ कम आत्मा की तड़प रूह की बेचैनी को
चढ़ जाऊँ फाँसी मगर दिलाऊँगा आजादी इसको
ये जन्म कम है तो, अगले जन्म में आऊँगा
पर देश को मुक्ति जरूर दिलाऊँगा।
जो सोचा था कर दिखलाया
भले ही उसको फाँसीं चढ़वाया
शहीद भगत सिंह नाम कमाया
आज भी सब के दिल में समाया।
वतन से दूर
वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बसती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती।
बसी है अब भी साँसों में
वो सौंधी गंध धरती की
मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में
दुआ रब से यही करती।
बड़े ही वीर थे वो जन
जिन्होंने झूल फाँसी पर
दिला दी हमको आजादी।
नमन शत-शत उन्हें करती।
Bhawna
4 टिप्पणियां:
आभार इतनी बेहतरीन गजलें शेयर करने का...आनन्द आ गया....बहुत खूब!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......... गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ....................
देश प्रेम की तड़प दिल में एक कसक -सी छोड़ जाती है। भावना जी की इस कवितामें वही अभीभूत करने वाला सौन्दर्यबोध है जो अन्य रचनाओं में मिलता है । बहुत बधाई!!
वतन से दूर
वतन से दूर हूँ लेकिन
अभी धड़कन वहीं बस्ती
वो जो तस्वीर है मन में
निगाहों से नहीं हटती |
क्या अंदाजा बयाँ है |
आप को मेरे ब्लॉग http..kumar2291937.blogspot.com सादर आमन्त्रण है |
आप की टिपणी मेरे लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगी
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