29 अगस्त 2015

राखियाँ घर नहीं आईं"


"राखियाँ घर नहीं आईं"

सदा की तरह राखियों से
बाज़ार सजा होता,
कलाई सजे भाई की
ख़्वाब बहन का होता।
छोटे थे हम
प्यारा हमारा भाई
जाने फिर भी क्यूँ
सूनी रहती उसकी कलाई,
डबडबाई आँखों में
हजारों सवाल तैरते
जवाब भी मिलता
पर समझ नहीं आता।
दिखती बहना रोती कहीं
भाई बिना सूनी भई।
कहीं भाई उदास होता
बहना उसके है नहीं।
पर हम तो हैं, दो छोटी बहनें,
बड़ा है, प्यारा सा एक भाई,
जाने क्यूँ फिर घर हमारे
राखियाँ ही नहीं आईं?
आँसुओं से,लबालब आँखे
एकदूसरे को निहारती,
दुःख से हम बिलख ही पड़ते,
फिर तीनों गले लगते
रोते-रोते सो जाते
दर्द भरे सपनों में खो जाते।
आज बड़े हो गए
समझ भी अब सयानी हो गई
"आन पड़ी है"
कहानी ये पुरानी हो गई
भाई की लम्बी उम्र की कामना
आज भी हर साँस करती है।
पर आज भी तिरती है आँखों में,
राखियों से सजी थाली
पर बात अब भी वही
पुरानी रूढ़ी, परम्परा वाली।
अब तो परदेस में बसी हूँ,
पर पुराने रिवाज़ों में अब भी फँसी हूँ।
भाई की सूनी कलाई,
आज भी सीने में खटकती है।
आज भी आँखों में, वो नमी
बेरोक-टोक विचरती है,
और सदा की भाँति "राखी"
आज भी तो बस हमारे
दिल ही में सँवरती है।

डॉ० भावना कुँअर















Bhawna

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मार्मिक...

सहज साहित्य ने कहा…

एक-एक पंक्ति दिल को छू गई । रूढ़ियों ने हमारा सुख चैन छीन लिया है। जीवन का आधार है प्रेम। काश ! हम सह्ज जीवन जी पाते। आपके काव्य में भावों की गहराई अनेकानेक रूपों में लक्षित हो रही है। यही आग्रह है कि निरन्तर सर्जन-रत रहकर रससिक्त करती रहें।

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्यारी कविता. बधाई

रचना दीक्षित ने कहा…

ये दिल का रिश्ता है. सुंदर कविता.

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

प्रशंसनीय

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सुंदर । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सुंदर । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सुंदर । मेरी ब्लॉग परआप का स्वागत है ।