कुछ ऐसे हालात बने कि मेरा ब्लॉग मुझे पुकारता रहा और मैं उसकी पुकार सुनकर भी उस तक ना आ सकी किस्मत ने कुछ ऐसा पटका दिया कि अब तक नहीं सँभल पाई दुःख तो बहुत है पर जहाँ अपनी नहीं चलती वहाँ क्या किया जाए-
रूठ जाती है किस्मत कभी
तो कभी साथी छोड़ देता है साथ
खिलाए थे जो रंग-बिरंगे फूल संग-संग हमने
खो जाती है उनकी खुशबू कहीं
और हम मन को मजबूती से पकड़े
समेटने की नाकामयाब कोशिश
करते रह जाते हैं आखिरी साँस के साथ...
2016 में "हम लोग" पत्रिका में पेज न० 61पर मेरे कुछ माहिया प्रकाशित हुए हैं लिंक है-
file:///C:/Users/Bhawna/Downloads/humlog%202016%20final%20new.pdf
Bhawna
रूठ जाती है किस्मत कभी
तो कभी साथी छोड़ देता है साथ
खिलाए थे जो रंग-बिरंगे फूल संग-संग हमने
खो जाती है उनकी खुशबू कहीं
और हम मन को मजबूती से पकड़े
समेटने की नाकामयाब कोशिश
करते रह जाते हैं आखिरी साँस के साथ...
2016 में "हम लोग" पत्रिका में पेज न० 61पर मेरे कुछ माहिया प्रकाशित हुए हैं लिंक है-
Bhawna
4 टिप्पणियां:
आपके माहिया दिल की धड़कनों का सार्थक अनुवाद हैं। ब्लॉग फिर से शुरू करने के लिए बधाई।
sach ye kismat aisi hi hoti hai----bahut badhiy
blog par punah aapki vapsi par aapka blog jagat par hardik swagat hai---
badhai
सुन्दर शब्द
बहुत सुन्दर । ब्लाॅग पर पुनः पहुँचने का स्वागत ।
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