एक चिड़िया
हमेशा मेरे कमरे में आया करती
दीवारों पर उछल-कूद करती
और फिर एक ऊँची
और लम्बी उड़ान भरती
फिर लुप्त हो जाती।
उसकी इस क्रीड़ा को
मैं समझ नहीं पाती।
वह रोज़ आती
और इसी प्रक्रिया को दोहराती।
आज़ भी हमेशा की तरह
देखा मैंने उसको
आते हुए
उसी स्वच्छन्दता से
उछलते-कूदते हुए
और फिर
फिर उसने उड़ान भरी,
आज़ भी
उसकी उड़ान में
हमेशा की तरह
कोई ठहराव न था
चाह थी
कुछ और ऊँचाई पाने की
अभी कुछ दूर ही
उड़ पायी थी वो
खुली खिड़की की ओर,
कि अचानक देखा मैंने
उसकी उड़ान में
यह ठहराव कैसा?
हाँ एक न मिटने वाला ठहराव
क्योंकि
अपनी उड़ान की तीव्रता में
नहीं देख पायी वो
खिड़की पर लगे शीशे को,
नहीं देख पायी
अपनी छवि उस चमक में,
लुप्त हो गयी उसकी उड़ान
दूर कहीं अंतरिक्ष में
हमेशा के लिये।
28 मई 2007
ऊँचे सपने
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7 टिप्पणियां:
बहुत मार्मिक चित्रण है. हमें हमारी ऐना की याद आ गई:
http://udantashtari.blogspot.com/2006/12/blog-post_29.html
यही जिन्दगी है.. "ऐ भाई जरा देख के चलो..(उडो).
कौन जाने कब कहां कैसे किसे से या उस से (मौत) से मुलाकात हो जाये...
सुन्दर रचना है जो एक छोटी सी परन्तु ह्र्दयग्राही घटना से उपजी है
सपने जो उंचे होंगे तो ठोकर की सम्भावना तो बढ ही जायेगी। परंतु सम्भावना से डरकर अकर्मण्यता बेवकूफी है। मैं कोई समीक्षक तो नही और ना ही मुझे साहित्य मे पांडित्य हासिल है परंतु इतना जरूर कहूँगा की आपकी यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी।
समीर जी सही कहा आपने कुछ घटनायें ऐसी होती हैं जो एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। मैं वह दृश्य भुला नहीं पा रहीं हूँ एक रिश्ता बन गया था मेरा उसके साथ आज़ उसकी कमी बहुत खल रही है।
मोहिन्दर जी शुक्रिया।
विकास जी जो मैसेज़ मैं देना चाहती थी वह आपने बिल्कुल ठीक समझा। रचना के भाव को समझने के लिये शुक्रिया।
aadarniya bhawna ji,
namaskar.
dono rachnaye kafi rochak lagi, manav antarman ka vislashan karna koi aap se sikhe.
ruhe wali rachna me aapne zindgi me aane wale dukho ko kafi sahez tareke se bataya hei, issliye to hindu dharm me MOKSH ke kamna ke gaye hei.
thanks
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