उदासी के ये बढ़ते घेरे
मेरे अन्तर्मन में
काले सर्प की तरह
फन फैलाकर
बैठ गये हैं।
एक अँधेरे कुँए में
फेंक दिये गये
अजन्मे शिशु की तरह
डूबता जा रहा है
मेरा अस्तित्व।
सन्नाटे भरा हर पल
मेरे रोम-रोम को
भूखे शेर की तरह
नोंच-नोंच कर खाये जा रहा है।
जन्म से मृत्यु की ओर
बढ़ता ये सफ़र
साँसों की धूमिल डगर को
तार-तार किये जा रहा है।
अब तो है बस इंतजार
इस सफ़र के अंतिम पड़ाव का
ताकि फिर कर सकूँ तैयारी
इक नये सफ़र की।
शायद आने वाला नया सफ़र
दे सके मेरे सपनों को
एक पूर्णता
एक नयी उंम्मीद...
डॉ० भावना
6 टिप्पणियां:
sunder kavita.....
मन की व्यथा की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है आपकी कविता में । बधाई एक बहुत अच्छी कविता के लिये। लेकिन-------
कोई साथ मिले तो बेहतर है नहीं साथ तो कोई बात नहीं। सूरज का निकलना रोक सके इतनी लम्बी कोई रात नहीं। तुम दिये को बस जलते रखना, हो जाती जब तक भोर नहीं । कोई रात निगल जाये तुझको, तूँ इतनी कमजोर नहीं। कोई खवाब जो देखा है ऊंचा, तो इसका भी अहसास रहे। मंजिल जितनी ऊन्ची होगी, राहें उतनी मुशिक्ल होंगी। लेकिन ये मेरा वादा है गर तेरा पक्का इरादा है । तो मिलने में भले देरी होगी, मंजिल इक दिन तेरी होगी ।
गजब की अभिव्यक्ति है भावना जी...सून्दर कविता के लिये बधाई...
एक अँधेरे कुँए में
फेंक दिये गये
अजन्मे शिशु की तरह
डूबता जा रहा है
मेरा अस्तित्व।
क्या बात है!!!
घोर अवसाद की अभिव्यक्ति है आप की कविता में....जीवन में आशा और विश्वास होना ही चाहिए... सुंदर शब्दों में लिखी है आप ने ये रचना...
नीरज
aapki rachna waakai dil ko chuti hai .bahut acchi pangtiya hai .
me bhi ek blog likne ki kosis kar rahi hu ,please jarur dekhe
Bravo, what words..., a magnificent idea
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