अन्तिम यात्रा
A और B दो अलग-अलग संप्रदाय के होते हुए भी इतने अभिन्न मित्र थे कि उनकी मित्रता ही उनकी पहचान और दूसरों के लिये मिसाल बन चुकी थी। बचपन से ही पड़ोसी रहे दोनों का ही बचपन साथ-२ पुराने शहर की गलियों में दौड़ते हुये फिर स्कूल, कॉलेज तक और बाद में साथ-साथ ही सेना की नौकरी तक जवानी तक पहुँचा था। विवाहोपरान्त भी दोनों के आपसी संबंध में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ था। दोनों ने साथ ही पसीने की कमाई से शहर से बाहर बस रहे नये शहर में बराबर-२ के मकान बनवाये थे ताकि वृद्धावस्था में भी समय साथ ही बिताने का मौका मिला रहे।दोनों के एक-एक पुत्र थे और वह भी पढ़ लिखकर पिता की तरह ही देश की सेवा के लिये सेना में भर्ती हुए थे अब A और B का भी रिटायरमेंट हो चुका था और सेना की अनुशासनता और दबंगता दोनों में अब भी उतनी ही थी जितनी सेना की नौकरी के समय हुआ करती थी । दोनों साथ-साथ ही अपने-२ संप्रदाय के तीज - त्यौहार भी साथ-२ मनाते थे। वह अकसर देश और समाज में फैली सम्प्रदायकता से जुड़ी बुराईयों पर विचार करते और दुखी होते थे। यही कारण था कि दोनों ने यह निर्णय लिया था कि' अपना समय समाज में फैली बुराईयों को दूर करने में ही लगायेंगे।
दोनों कभी अपना पुराना समय याद करने के लिये अपने दुपहिये वाहन को लेकर पुराने शहर की उन्हीं तंग गलियों में निकल पड़ते और पुराने हलवाई,पान वालों आदि की दुकान पर उनका लुत्फलेतेअपानीपेंशन का एक हिस्सा दोनों ही समाज के ऊपर खर्च करने में लगाते और समय-समय पर प्रौढ़ शिक्षा, चिकित्सा कैंप आदि का आयोजन करते रहते। यही कारण था कि दोनों ही आम लोगों में बहुत ही लोकप्रय हो चुके थे।
अब तो शहर में होने वाले किसी भी सरकारी आयोजनों में उनको आंमत्रित किया जाना जैसे अनिवार्य सा हो चुका था। चाहे जिलाधिकारी हों या पुलिस अधीक्षक आदि सब उनका अभिवादन करते थे। मगर ना जाने सांप्रदायिकता की आग ने क्यों पुराने शहर को अपने शिकंजे में बुरी तरह जकड़ रखा था। कोई तीज-त्यौहार आया नहीं कि सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते थे पूरे शहर में और परिणाम कर्फ्यू। दोनों ही यह सब देखकर बहुत हताश हो जाते थे और भरपूर प्रयास करते थे लोगों में जागरूकता लाने की, पुलिस अधीक्सक भी अकसर उनसे राय मशवरा लेते थे इन हालातों पर ।
इस वर्ष फिर गुप्त सूत्रों द्वारा पुलिस को सूचना मिल रही थी कि कुछ बाहरी ताकतों की राय में फिर दंगाईयों ने दंगा करने की योजना बनायी है।पूरे शहर में रैड अलर्ट थी और आने आते जाते वाहनों की गहन जाँच पड़ताल चल रही थी । कुछ मौहल्लों से छुटपुट वारदातों की भी सूचना पुलिस महकमें में आये दिन आने लगी थी। मौके की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक ने शहर के सभी प्रमुख व्यक्तियों के साथ एक सभा का आयोजन किया जिससे इस बात पर विचार किया जाना था कि कैसे इन हालातो को सुधारा जाये और पहले की तरह सामान्य बनाया जाये। Aऔर B भी '''इस आयोजन में आमंत्रित थे और हमेशा की ही तरह दोनों बिना अनुपस्थित B भी इस आयोजन में अपनी दुपहिया को लिये तैयार थे पुलिस अधीक्षक के आफिस तक जाने के लिये। हालांकि आज A कुछ अस्वस्थ थे और मगर B के लाख मना करने पर भी A उस सभा को छोड़ने के लिये तैयार न थे।आखिर B को भी उनके सामने झुकना पड़ा और साथ-साथ सभा में ले जाना पड़ा। सभा बहुत ही सफल रही और A और B के सुझावों की सभी गणमान्य व्यक्तियों ने बहुत ही सराहना भी की। सभा समाप्ति के बाद दोनों साथ ही आफिस से बाहर आये और दुपहिये पर बैठ गये।
A की तबियत में अ'भी भी ज्यादा सुधार नहीं था। मगर सेना की दबंगता A को झुकने के लिये तैयार नहीं थी। B ने सुझाव दिया कि अच्छा होगा कि लम्बे रास्ते की जगह पुराने शहर की पुलिया से चला जाये ताकि पूरा शहर भी पार न करना पड़े और घर भी शीघ्र पहुँच जायें। दोनों की सहमति होने पर A ने दुपहिये को ड्राइव करना शुरू किया और B हमेशा की तरह A के पीछे की सीट पर बैठ गये। दोनों ही सभा में हुई चर्चाओं के बारे में बात करते हुये पुराने शहर की पुलिया तक पहुँच गये। पुलिया पर चढ़ाई के समय A के दुपहिये ने भी अपनी हालत नासाज होने का सिग्नल दिया और दो व्यक्तियों को साथ ले जाने से साफ इंकार कर दिया। B ने A को कहा कि क्योंकि A की तबियत ठीक नहीं है इस लिये अच्छा है कि A अपने दुपहिये से अकेले ही पुलिया को पार कर ले और B पैदल ही चलकर पुलिया पार कर ले।
पहले तो A ने साफ इंकार किया और कहा कि दोनों पैदल ही दुपहिया को हाथ में लेकर पुलिया पार कर लेंगे। मगर B ने A को विवश कर ही दिया कि A अस्वस्थ होने के कारण A को अकेले पुलिया ही दुपहिया पर बैठकर पार करनी चाहिये और B पैदल पीछे-२ आ जायेंगे और फिर A चल पड़े अपने रास्ते और B पीछे-२।मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। दंगाई जो कि A के संप्रदाय के थे शहर में हल्ला करते हुए उसी पुलिया से गुजर रहे थे और जब उन्होंने रास्ते में B को अकेला पाया तो उन कठोर ह्रदय लोगों ने B के अस्तित्व को इस तरह तहस-नहस किया कि B की आह तक भी A तक नहीं पहुँच सकी। जब A ने धीरे-धीरे पुलिया पार की ओर पुलिया के दूसरी ओर B का इंतजार करने लगा मगर उसका इंतजार इतना लम्बा हो गया जायेगा उसको ये अंदेशा भी न था। जब B ने पुलिया के उस पार उस ओर से दंगाईयों को अक्रामक तरीके से आते हुये देखा तो उसके चेहरे पर चिन्ता की लहर दौड़ गयी और वह सब कुछ भूलकर पुलिया के दूसरी ओर दौड़े मगर जल्द ही उनको खून के धब्बे B का चश्मा और B के स्लीपर तितर-बितर नजर आये और अंत में वही भयानक दृश्य A की आँखों के सामने आ ही गया जिसका डर A के मन में अनचाहे ही आ चुका था। A की तो जैसे दुनिया ही उजड़ चुकी थी।आज उसके सामने उसका बचपन का साथी अन्तिम यात्रा पर निकल चुका था और A निशब्द उसको एकटक देखता ही रह गये क्योंकि उन्हें इस यात्रा में भी तो B का साथ जो देना था।
प्रगीत कुँअर
6 टिप्पणियां:
क्या बात है...बहुत अनोखा तरीका अपनाया इतना उताम संदेश देने को..आभार एवं साधुवाद.
क्या बात है...बहुत अनोखा तरीका अपनाया इतना उताम संदेश देने को..आभार एवं साधुवाद.
दिल के दिखी दरमियां काफ़ी दिन बीते पर एक कहानी
बहती हुई भावनाओं की गति तो है जानी पहचानी
पर कितना अनुभूत हुआ है, और अभी कितना बाकी है
इस उधेड़-बुन में किख लिख कर थके न होती खत्म कहानी
अन्दाज पसन्द आया. बहुत-बहुत बधाई
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ .....पर अंदाज काबिले तारीफ है.......बधाई लिखती रहे ....अगले लेख के इंतज़ार मे
समीर जी आपको इतने दिन बाद देखकर अच्छा लगा आपको कहानी पसन्द आई उसके लिये प्रगीत की ओर से धन्यवाद।
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राकेश जी आपका अन्दाज़ तो निराला है ही उसमें कोई शक नहीं शुक्रिया ...
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विजय जी आपको पहली बार ब्लॉग पर देखा आशा है आगे भी हौसला बढ़ाते रहेंगे धन्यवाद पसन्द के लिये और ब्लॉग पर आने के लिये भी....
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अनुराग जी आप ब्लॉग पर आये सराहा अच्छा लगा, आगे भी आप लोगों का सहयोग मिलता रहेगा यही आशा है बहुत-बहुत धन्यवाद...
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