26 जून 2008

जरा आजकल तबियत नासाज़ रहती है लिखने का तो बहुत दिल करता है मगर शब्द हैं कि आह !बनकर उड़ जाते हैं पकड़ने की कोशिश जारी है…


बड़े-बड़े सपने
जो अचानक
दिखाये थे तुमने!
वो सब सपने
दिल की दहलीज़ पर आकर
खुशी में बरसे
आँसुओं की झड़ी में
फिसल कर रह गये…
काश ! मैंने
उन सपनों को
जिया ना होता…
काश ! मैंने उन्हें
सच ना माना होता…
काश ! मैंने उन्हें
दिल की धड़कन में ना समाया होता…
काश !
आँसुओं को झरने से
रोका होता…
तो आज़
मेरे भी वो सपने
साकार होते…
कहते हैं ना
कभी खुशियों को
खा जाती है…
नज़र की डायन…
मेरे साथ भी
ऐसा ही हुआ
जो सपने मेरे थे…
जो कुछ ही पल में
साकार रूप लेने वाले थे…
चुरा लिया उन्हें
कुछ कमजर्फ लोगों ने…
मिटा ली नज़र की डायन ने
उनसे अपनी भूख…
और मेरे सपने
मेरे ही दिल की दहलीज़ से
फिसल कर जा गिरे
उन लोगों के दामन में
जिन्होंने सदा ही
छीना था मेरी खुशियों को…
और आज़
छीन लिया मुझसे
मेरे जीने का हक भी
काश ! मैं उन सपनों को
कहीं छुपाकर रख पाती…
तो आज़ जीने का हक तो ना खोती…
जिन्दा रहती तो
शायद फिर से
अपने दिल के घरौंदे में
सज़ा पाती नये-नये सपनों को…
और साकार कर पाती
हर सम्भव सपने को…
काश ! ऐसा हो पाता…


भावना

13 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

काश ! ऐसा हो पाता…


सच कहा काश ऐसा हो पाता..कुछ सपनों की उम्र शायद यूँ ही दिल के किसी कोने में छिपी रहती है जो अपने होने का एहसास यूँ लफ्जों में ढल कर दिलवाती है

रंजू :)

ghughutibasuti ने कहा…

सपने तो अपने हैं, जब जी चाहे सजा लीजिए। अच्छा लिखा है।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

bhavana ji bhut sundar rachana ki hai.likhati rhe.

डॉ .अनुराग ने कहा…

सपनो को जिंदा रहने दे......यही सपने आपके वजूद को जिंदा रखेगे..बहुत दिनों बाद लिखा.....लिखती रहिये...मई सिर्फ़ इसलिए लिखता हूँ क्यूंकि इससे मुझे एक नई उर्जा मिलती है......कविता बहुत खूबसूरत है.....

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन भावपूर्ण रचना. दो बार पढ़ ली है/ लिखिये और!!

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

हर सपना शिल्पित हो लेगा
पकड़ो विश्वासों का दामन
सिन्दूरी हो लेंगी साधें
चित्रित होगा मन का आँगन
भेजो उंगली के पोरों से
शब्दों को फिर नया निमंत्रण
बरसेगा अनवरत झूमता
फिर से रचनाओं का सावन

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर! लिखती रहें।

Anil Pusadkar ने कहा…

bahut badhiya

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

वाह भावना जी आप बहुत अच्‍छा लिखते हैं बाकी एक बात मैं आपसे पूछना चाहूंगा कि ये सपने यदि कोई हमें दिखाए और उसकी कोई मजबूरी हो कि वो पूरा नहीं कर पाए तो इन बातों को दिल से लगाना चाहिए या नहीं बाकी बहुत ही अच्‍छा भाव अति सुंदर मनमोहक

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

सही कहा रंजू जी
धन्यवाद
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जी घुघूती जी कम से कम सपनों पर तो किसी का दखल नहीं...
रचना पसंद करने के लिये धन्यवाद...
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रश्मि जी बहुत-बहुत शुक्रिया।
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जी अनुराग जी जरूर...
धन्यवाद...
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समीर जी बहुत खुशी हुई जानकर कि आपने रचना २ बार पढ़ी यानि पक्का सबूत की पसंद आई
तहे दिल से शुक्रिया... स्नेह बनाये रखिये...
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राकेश जी आपने बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ मार्गदर्शन किया आभारी हूँ...
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अनूप जी धन्यवाद...
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अनिल जी शुक्रिया
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मोहन जी रचना पंसद करने लिये धन्यवाद और जैसा कि आपने पूछा--
"आपसे पूछना चाहूंगा कि ये सपने यदि कोई हमें दिखाए और उसकी कोई मजबूरी हो कि वो पूरा नहीं कर पाए तो इन बातों को दिल से लगाना चाहिए या नहीं"
तो मोहन जी सपनों पर हमारा बस कहाँ होता है कभी कुछ सपने पूरा होना बस में नहीं होते कारण वही परिस्तिथियाँ, मजबूरी, तो बस दिल से तो नहीं लगाना चाहिये हाँ सामने वाले की मजबूरी को समझना चाहिये...
पर हाँ कुछ सपनों के पूरा न होने से जो मन में कसक या टीस रह जाती है उनको हमें शब्दों में ढालने से अंकुश नहीं लगाना चाहिये ताकि मन का बोझ कुछ कम हो सके ...
यही तो जीवन है "कभी धूप कभी छाँव"

बेनामी ने कहा…

भावना जी, सार्थक लिखने के लिए बधाई स्वीकारें.
सपने होते ही हैं चटकने के लिए
सपने होते ही हैं आंसू बहाने के लिए
बहुत खतरनाक होता है सपनों में जीना
हर सपने को कुछ कमजर्फ लोग चुरा ले जाते हैं..........................सत्य यही है. सपने किसी के नहीं होते. वह खट्ठे-मीठे पलों के साथी होते हैं. सपनों के चटकने की पीड़ा. किसी के वियोग से कम नहीं होती. आपके ब्लाग में भाई हरि जोशी के जरिए आया हूं.

बेनामी ने कहा…

भावना जी, सार्थक लिखने के लिए बधाई स्वीकारें.
सपने होते ही हैं चटकने के लिए
सपने होते ही हैं आंसू बहाने के लिए
बहुत खतरनाक होता है सपनों में जीना
हर सपने को कुछ कमजर्फ लोग चुरा ले जाते हैं..........................सत्य यही है. सपने किसी के नहीं होते. वह खट्ठे-मीठे पलों के साथी होते हैं. सपनों के चटकने की पीड़ा. किसी के वियोग से कम नहीं होती. आपके ब्लाग में भाई हरि जोशी के जरिए आया हूं.

adil farsi ने कहा…

आँख में स्वपन कब था किसी रात का ।
दर्द दिल में था शायद तेरी घात का ।।
सच, स्वपन टूटने पर ऐसा ही अनुभव होता है अच्छी कविता के लिये ...बधाई
सपने हैं सपने कब हुऐ अपने.....