रात का सन्नाटा और भी बढ़ा देता है मन की वीरानी को... और ढकेल देता है यादों की गहरी खाईयों में... कभी न निकलने के लिए... और गहराता जाता है हर पल, हर क्षण कभी न खत्म होने वाली बीमारी सा और एक दिन ले जाता अपने संग कभी ना लौटाने के लिए...
मंथन करना पड़ेगा. रात के अंधेरों के मामले में मैं अपना पक्ष अपने ही एक शेर के माध्यम से रख रहा हूँ:- मुद्दत से अंधेरों को है बदनामियाँ हासिल, डसने के वास्ते हैं उजाले कहीं-कहीं.
जीवन में हैं मुस्कानें भी सन्नाटा टूटेगा । खुशियाँ आ ही जाएंगी यह वक्त नही रूठेगा । भोर तो होकर रहेगी मन इतना तो निश्चय मानो किरणों का गागर नील गगन में जब-जब फूटेगा ।
Kafi achchchi vyakhyaa.... is kavita se mujhe tulsidaas ji ki pankti yaad aati hai. Ram chandra seeta ke viyog me baadal ke garajne ke sandarbh me kahte hain: घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
Bahut achchhi vyakhyaa....is kavita se Ramcharitmanas ki ek pankti yaad ati hai. jab sriram seeta ke voyog me baadal ki awaaz sun kar aisa kahte hain: घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
सम्मानीय डाक्टर साहेबा।एक पत्रिका में आपके हाइकू पढे आपका नाम पत्रिका में देख कर बहुत खुशी हुई। । हिन्दी गजल में विद्रोह के स्वर पर आपने पी एच डी की है। डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया है। आपका हाइकू संग्रह ’’तारों की चूनर प्रकाशित हो चुका है। गहरी खाइयों से कभी न निकलने के लिये मन की वीरानी का खाइयों में चला जाना और उसका कारण है रात का सन्नाटा। और कभी खत्म न होने वाली बीमारी की तरह अपने संग लेजाना । यह रचना बेचैन साहब की ही होगी या आप की है मै समझ नहीं पाया हूं।
22 टिप्पणियां:
मंथन करना पड़ेगा.
रात के अंधेरों के मामले में मैं अपना पक्ष अपने ही एक शेर के माध्यम से रख रहा हूँ:-
मुद्दत से अंधेरों को है बदनामियाँ हासिल,
डसने के वास्ते हैं उजाले कहीं-कहीं.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com
जीवन में हैं मुस्कानें भी सन्नाटा टूटेगा । खुशियाँ आ ही जाएंगी यह वक्त नही रूठेगा । भोर तो होकर रहेगी मन इतना तो निश्चय मानो किरणों का गागर नील गगन में जब-जब फूटेगा ।
बहुत अच्छी लगी यह रचना।
Kafi achchchi vyakhyaa.... is kavita se mujhe tulsidaas ji ki pankti yaad aati hai.
Ram chandra seeta ke viyog me baadal ke garajne ke sandarbh me kahte hain:
घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
-Rajesh "Nachiketa"
Bahut achchhi vyakhyaa....is kavita se Ramcharitmanas ki ek pankti yaad ati hai. jab sriram seeta ke voyog me baadal ki awaaz sun kar aisa kahte hain:
घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
achchha laga...
-Nachiketa
bahot sunder.
आपका ब्लोग देखा पसन्द आया भाव तो देख्ते पढ्ते ही बनते है
Bahut hi prabhavshali abhivyakti ---sundar rachna.
सम्मानीय डाक्टर साहेबा।एक पत्रिका में आपके हाइकू पढे आपका नाम पत्रिका में देख कर बहुत खुशी हुई।
। हिन्दी गजल में विद्रोह के स्वर पर आपने पी एच डी की है। डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया है। आपका हाइकू संग्रह ’’तारों की चूनर प्रकाशित हो चुका है।
गहरी खाइयों से कभी न निकलने के लिये मन की वीरानी का खाइयों में चला जाना और उसका कारण है रात का सन्नाटा। और कभी खत्म न होने वाली बीमारी की तरह अपने संग लेजाना । यह रचना बेचैन साहब की ही होगी या आप की है मै समझ नहीं पाया हूं।
बहुत बेहतरीन भावपूर्ण!
अपने भावो को संपूर्ण रूप से व्यक्त्त करने वाली कविता।
"जलधि" हरि
kavyamritjaladhi.blogspot.com
अपने भावो को संपूर्ण रूप से व्यक्त्त करने वाली कविता।
"जलधि" हरि
kavyamritjaladhi.blogspot.com
bahut achche bhav hain
Brijmohan ji dhanyavaad.....raat ka sannata meri likhi rachna ha papaji ki nahi...unki rachna unke hi name se unke blog par di jaati hai...
Dr bhavna ji
bahut hi sateek baat kahi hai aapne man se yaadon ka naata kabhi nahi tutataa.nav varsh ki haardik shubhkaamnaayen. :-)
बहुत अच्छी लगी यह रचना।
Austriliya main rehkar hindi se prem
wah bhawna G
dr.bhawnaji namaste.lucknow se prakasit apratim patrika me aapki kavitayen prakasit hain
dr.bhawnaji namaste.lucknow se prakasit apratim patrika me aapki kavitayen prakasit hain
dr.bhawnaji namaste.lucknow se prakasit apratim patrika me aapki kavitayen prakasit hain
dr.bhawnaji namaste.lucknow se prakasit apratim patrika me aapki kavitayen prakasit hain
dr.bhawnaji namaste.lucknow se prakasit apratim patrika me aapki kavitayen prakasit hain
अच्छी रचना के लिए बधाई !
हाँ देर हो गई आने में !
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