तीन महीने का लम्बा सफ़र जो लम्बा लगा नहीं ना जाने कैसे गुजर गए ये ३ महीने इसे ही कहते हैं अपनों का साथ जी हाँ भारत यात्रा पूरी हुई बहुत सारी खट्टी मिट्ठी यादों को समेटे हमारी वापसी १४ फरवरी वेंलनटाईन डे वाले दिन हो गई अब यहाँ की इतनी व्यस्तता की आज किसी तरह समय चुराया है फिर से अपने लेखकों, पाठकों के बीच में आने का कुछ लिखा है इस तरह गौर फरमाईगा ...
मेरी आँखों पर
इतने पहरे ...
पहले तो न थे ...
देख सकती थी मैं भी...
खूबसूरत ख्वाब ...
पर अचानक क्या हुआ?
जो निकाल ली गई
इनकी रोशनी ...
और अब तो ये
रो भी नहीं सकती ...
भावना
11 टिप्पणियां:
बहुत खूब ... आँखों पर पहरे लग जाएँ तो जीना दुश्वार हो जाएगा ....
बहुत दिनों बाद लिखा आपने....
फिर से वही कशिश है आपकी कविता में....
नमस्कार.
बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग सक्रिय हुआ । कविता पढ़ी । हर एक शब्द अबुझ दर्द से सराबोर था । भावोद्रेक का नायाब अ नमूना है आपकी यह कविता ।
ओह! अजब भाव...दर्दीला सा....
को समेटे हमारी वापसी १४ जुलाई वेंलनटाईन डे वाले दिन
१४ परवरी कर लिजिये.
एक बार फिर स्वागत है आपका और आपकी भावपूर्ण कविताओं का ....
बहुत बढ़िया.
bhavna ji
aapki yah choti si kavita bahut hi gudh arth samete hue hai apne aap me .
badhai v dhanyvaad
poonam
होली की खूबसूरत और रंगबिरंगी शुभकामनाएं |सुंदर भावपूर्ण कविता के लिए बधाई |
मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
Uf! Ye kya kah dala aapne?
Holee kee dheron shubhkamnayen!
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