4 मार्च 2013

सुहाने दिन


याद आ रहे
पापा बहुत आप।
आपका प्यार
अपना परिवार।
सुहाने दिन
बिताए संग मिल।
चिन्ता न फिक्र।
आपकी स्नेही छाया।
माँ से भी खूब
था ममता को पाया
हाथ पकड़
स्कूल संग ले जाना
बस्ता उठाना।
थक जाने पर यूँ
माँ का पैर दबाना।
बड़े ज्यूँ हुए
भर गई मन में
पीर ही पीर
कहना चाहूँ
पर कह ना पाऊँ
भीगा है मन 
फिर ढूँढने चली
घर का कोना
छिपा दूँ जिसमें
आँसू की धारा
हर तरफ मिली
सीली दीवारें ,
सहमें- से सपने।
डर के मारे
पुकारती हूँ पापा-
जल्दी से आओ
अनकही -सी व्यथा
सुनते जाओ
यूँ दोबारा हिम्मत
जुटा न पाऊँ
दम सा तोड़ गई
गले में मेरे
दर्द -भरी आवाज़
अधूरी रही आस।

Bhawna

10 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं sath hi मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .

सहज साहित्य ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सहज साहित्य ने कहा…

बचपन की सुधियाँ बहुत मधुर होती हैं । न वे दिन वापस आते हैं और न वे सुख । इस मार्मिक अनुभूति को चोका के माध्यम से बहुत कुशलता से आपने अभिव्यक्त किया है ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत भावपूर्ण...कितना कुछ याद करा गई यह रचना...अलग रुप में...

travel ufo ने कहा…

सुंदर यादो से भाव विहल करती रचना

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बड़े होने का क़र्ज़ ..... :(
दिल को छू गयी आपकी रचना !
~सादर!!!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Aap sabhi ka bahut-2 aabhaar jo mere bhaav aap logon tak pahuch paye...kabhi2 bhavukta jyada hi gher leti hai aisa aap logon ke saath bhi jarur hota hoga na? :)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Anita ji sahi kaha aapne bade hone ka karj hi hai ye...aabhaar...

dr.mahendrag ने कहा…

बचपन की यादें अलग ही होती हैं,जब वे जगनी शुरू होतीं हैं तो आज का सब भूल जाता है इन्सान,

अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut sahi kaha aapne dr...or fir aadmi unse nikal hi nahi paata vahin jeeta hai...vahi khota hai..bahut2 aabhaar rachna pasand karne ke liye....