"मीठी यादों के कुएँ"
साथ रखना
मीठी यादों के कुएँ
छोड़े अपने
जहर बुझे बाण
खाली न हो उनकी
जब कमान
एक लोटा याद ले
तू छिड़कना।
अँधेरी रात जब
गम से घिरे
अपनापन जब
कम सा लगे
यादों के जुगनू
को
हथेली में ले
मन अटरिया पे
हौले रखते
जरा न झिझकना।
सुहानी भोर
जब चुभने लगे
ओस मोती भी
जब हरने लगें
एक प्याली में
चाय संग घुली वो
मीठी सी याद,
हरी घास पे पड़े
झूले का साथ,
धीरे से निकाल तू
एक नई सी
दुनिया बुन लेना।
मीठे सपने
घुटन सीने में ज्यूँ
भरने लगें,
पलकों से दर्द ज्यूँ
झरने लगे,
मधुर मिलन की
बीती रात की
सुनहरी सी याद
हौले निकाल
तू पलकों के पास
मोती समझ
बिना किसी
हिचक
चुपके भर लेना।
Bhawna
8 टिप्पणियां:
सुनहरी सी याद
हौले निकाल
तू पलकों के पास
मोती समझ
बिना किसी हिचक
चुपके भर लेना।
-Bahut Sunder
सुनहरी सी याद
हौले निकाल
तू पलकों के पास
मोती समझ
बिना किसी हिचक
चुपके भर लेना।
bahut sunder bhav
badhai
rachana
Aap dono ko bahut bahut abhaar mere soye blog par aane ke liye or kamal ye ki aap dono ko hi saman pankityian pasnad aayin dil se eak bar fir aabhar... :) :)
बहुत सुंदर लिखा भावना जी आपने, कई दिनों बाद तुलिका ने अपना रंग वापस बिखेरा , अच्छा लगा।
Narendra Purohit
वाह क्या बात है
सुनहरी सी याद
हौले निकाल
तू पलकों के पास
मोती समझ
बिना किसी हिचक
चुपके भर लेना।
मनों भावों का का सुन्दर चित्रण
''मीठी यादों के कुएं'' बहुत ही मीठे हैं।
बहुत सुन्दर कविता ! सचमुच मीठे कुँएँ के मीठे पानी जैसी । भाव -सरिता कल-कल छल-छल करती हुई।
खेद है की मेरी नज़र से यह रचना कैसे छूट गई !
Aap sabhi ka dil se aabhar meri rachna ko padhne or pasand karne ke liye, mera lekhn, blog to sab chhut sa gaya hai koshish karti hun Kuchh likhun par halat aise ban gaye hain ki chah kar bhi nahi kar pati... Bahut dukhad hai mere liye...
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