2- लिक्खी है पाती
अब ये दुनिया नहीं है भाती
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
बढ़ी बहुत बेचैनी मन में,
फैल रही नफरत जन-जन में
नही नींद भी अब आ पाती,
फैल रही नफरत जन-जन में
नही नींद भी अब आ पाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
4 टिप्पणियां:
सच में दुनिया ऐसी ही हो चली है...अच्छी रचना
संसार के कटु सत्य को उजागर करती कविता । हार्दिक बधाई भावना जी
वर्तमान परिस्थितयों का सजीव चित्रण। सुंदर रचना।
वर्तमान परिस्थितयों का सजीव चित्रण। सुंदर रचना
एक टिप्पणी भेजें