8 जून 2018

दुःखों की बस्ती

3.दुःखों की बस्ती
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दुःखों की बस्तियों में तो, बस आँसू का बसेरा है
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है...
वो देखो जी रहें हैं यूँ, न रोटी है न कपड़ा है
उन्हें मायूसियों के फिर, घने जंगल ने घेरा है...
नहीं रुख़्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोड़ा है
ये आँखें राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है...
नज़र आती नहीं कोई, किरण उम्मीद की उनको 
मगर सेठों के घर में तो, सवेरा ही सवेरा है...
मिले कोई तो अब उनको, जो समझे हाले दिल उनका
न छेड़ो ये तराना तुम, ये मेरा है ये मेरा है...

Dr.Bhawna Kunwar

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