7 अगस्त 2019

कालिदास/मेघदूत / ताँका

ताँका रचनाएँ

1
सूख चुकें हैं
घटाओँ के भी आँसू
बनी है शिला
कभी न बरसेगी
न कभी हरसेगी ।

2
मन भीतर
छन्न से कुछ टूटा
बिखरा सब
काले मेघों ने मुझे
इस तरह लूटा।

3

बची हैं कुछ
उलझी-उलझी सी
यादें पुरानी
जीने की चाह अब
हो चुकी है बेमानी।

4
सीले संदेश 
मुझ तक जो आए
पढें न जाएँ
बरस गईं आँखें 
होंठ कँपकँपाएँ।

5
तेज हवाएँ
ले उड़ी थी सन्देशे
जो भिजवाए
यादों के वो पन्ने भी
हुए अब पराए।

6
छीन ली पाती
जो मेघा ले चले थे
अश्रू भरे थे
सीपियों के बीच से
मोती बन झरे थे।

7
दुनिया वाले
ऊँगलियाँ उठाए
सीता पर भी
आँसुओं से नयना
भर-भर हैं जाएँ।
8
उमड़ पड़ा
आँसुओं का सैलाब
आँखों से आज
ये कैसा है तूफ़ान
जो ले गया है जान।

9
छलनी हुआ
से मासूम सा दिल
बिना कसूर
मिली ये कैसी सजा
कुछ पता न चला।

Dr.Bhawna Kunwar

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब