न मेंहदी सजी
न डोली उठी
न फेरे ही कर पाए
पर देखो आज …
उठा जो जनाजा मेरा
खामोश पलकों में
तेरी ही तस्वीर
लबों में तेरा नाम
जाने क्यूँ
रह-रह कर आए...
न डोली उठी
न फेरे ही कर पाए
पर देखो आज …
उठा जो जनाजा मेरा
खामोश पलकों में
तेरी ही तस्वीर
लबों में तेरा नाम
जाने क्यूँ
रह-रह कर आए...
© डॉ० भावना कुँअर
Editor
डॉ०भावना कुँअर
संपादिका-ऑस्ट्रेलियांचल ई-पत्रिका
6 टिप्पणियां:
प्रेम के रहस्य को कौन जान पाया है ।
बहुत भावपूर्ण , मर्मस्पर्शी सृजन
बहुत ही मार्मिक व हृदय स्पर्शी!
सृजन कभी वक्त निकालकर हमारे ब्लॉग पर भी आने का कष्ट कीजिएगा🙏
बहुत-बहुत आभार आपका ज्योत्सना जी...
बहुत-बहुत आभार आपका मनीषा गोस्वामी जी...
बहुत-बहुत आभार आपका संगीता स्वरूप जी...
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