"हैं रिसते दिल के जब छाले, बहुत ही टीस उठती है
जिधर देखो ये दुनिया तो, लिए बस सूई दिखती है।"
"था मैंने दिल की क्यारी को, लगाया चाव से लेकिन
मगर गुज़रा वहाँ से जो, उसी ने बो दिये काँटे।"
"ये माना फूल में है नूर भी, खुशबू भी है उसमें
मगर सच ये भी है कि फूल के ही संग हैं काँटे।"
डॉ० भावना
15 टिप्पणियां:
सुंदर भाव हैं, बधाई.
समीर जी बहुत-बहुत शुक्रिया।
भावना जी आज आपके शब्दों से निराशा कैसे झलक रही है?वैसे कविता के भाव बहुत सुन्दर है, बधाई!
www.nahar.wordpress.com
सागर जी जिन्दगी ये दो ही तो पहलू होते हैं 'सुख-दुख', आशा-निराशा, धूँप-छाँव कुछ भी कह लें। बस कभी कोई सा पहलू हावी हो जाता है मन पर कभी कोई सा। ऐसा ही हुआ होगा मेरे साथ भी जो ये सब लिख गयी। आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे सराहा उसके लिये शुक्रिया।
खुशी वो ही सराहा है कि जिसने पीर भोगी है
लगे है खूबसूरत फूल, जब जब चुभ गये काँटे
सुन्दर अशेआर हैं भावनाजी
बिल्कुल सही कहा है राकेश जी आपने। हौसला अफज़ाई का शुक्रिया।
भावना जी
सबसे पहले तो मेरा धन्यवाद स्वीकार करे आप ने मेरी कविता के लिए प्रतिक्रिया दी
अब कुछ मेरी सुनिये
जैसे ही आप की प्रतिक्रिया देखी तुरंत आप का परिचय भी देख लिया और साथ-साथ आप का चिट्ठा भी पूरा का पूरा देख लिया
आप लिखती हैं कि आप अधिक कुछ नहीं जानती यदि ऐसा है तो मैं तो बिल्कुल अनाडी ही हूँ
ऐसी स्थिति में मैं क्या लिखूँ ?
सारी विधाओं में आप पारंगत हैं और मैंनें अभी- अभी चलना सीखा है आप से गुजारिश है कि मेरा चिट्ठा पूरा पढे और कुछ लिखे
आप की फूल और काँटों की बात पर कहना चाहती हूँ कि
काँटों को मुरझाने का खौफ नहीं होता
आपका पूरा ब्लॉग पढा अच्छा लिखती हैं आप। आपकी रचना हिमखंड काफी अच्छी लगी। पर्वत को लेकर मेरी एक रचना है जो अनुभूति में छपी थी जो मुझे बहुत पसन्द है। आप मेरे लिंक में भी देख सकती हैं मैं लिख भी रही हूँ-
भ्रमण
गर्व न कर, गर तू बड़ा है
भले ही तू पर्वत की तरह खड़ा है
तुझसे तो चींटी भली है
जिसको भ्रमण तो मिला है।
काँटों के बारे में आपकी राय बिल्कुल सही है। शुक्रिया रचना पसन्द करने के लिये।
aadarniya bhawna ji, namaskar, blog par aapke sher padhe, aacha laga, muje pata nai tha ki aap sher bhi likti hei.
bhawna ji, aap me konsi khubi nahi hei vo bata dizeay, kalam par aapki pakad kafi majboot hei, bhagwan se yei prathna hei ki aap nirantar ucchayon ko chue.
narendra
नरेन्द्र जी बहुत-बहुत शुक्रिया। अब तो मैं भी भगवान से यही प्रार्थना करूँगी कि वो आपकी प्रार्थना सुन लें। देखा मैं स्वार्थी हो गई। :) :)
सच कहा अगर फुल में अगर काँटे न हो तो कोमलता का अहसास कहाँ रह पायेगा…सुख में अगर वेदना न हो तो खुशी के क्षण को कोई क्यों संजोयेगा…बहुत सुंदर भावनाओं का संगम…बधाई स्वीकारें!
दिव्याभ जी आज आपको अपने ब्लॉग पर शायद पहली बार देखा अच्छा लगा। आपको पंक्तियां पसन्द आईं उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
मोहिन्दर जी आपका ब्लॉग देखा, पढा और टिपण्णी भी दी। आपको मेरी पंक्तियाँ पसन्द आईं उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
भावना जी,
बहुत अच्छा। बधाई।
चमन में बहार आये तो कुछ इस तरह बहार आये।
फूल तो फूल हैं, काँटों पे भी निखार आये।।
सादर
श्यामल सुमन
श्यामल जी बहुत-बहुत शुक्रिया। आपकी पंक्तयाँ बहुत पसंद आई।
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