8 जुलाई 2007

यादों के सहारे


कल जब वो
मेरी गोद में आया,
बहुत मासूम !
बहुत कोमल !
इस संग दिल दुनिया से
अछूता सा,
शान्त!
बिल्कुल शान्त !
ना कोई धड़कन
ना ही कोई हलचल।
मेरा सलौना,
मेरा नन्हा,
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
नहीं भूल पाती
उसका मासूम चेहरा,
नहीं भूल पाती
उसका स्पर्श।
बस जी रहीं हूँ
उसकी यादों के सहारे।
देखती हूँ
हर रात उसका चेहरा
टिमटिमाते तारों के बीच
और जब भी कोई तारा
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
लगता है मेरा नन्हा
लौट आया है
तारा बनकर
और कहता है-
"मत रो माँ मैं यहीं हूँ
तुम्हारे सामने
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
यूँ ही रोते हुये
मेरा दिल दुखता है माँ
तुम्हें यूँ देखकर
मैं तो आना चाहता था,
किन्तु नहीं आने दिया
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
इस दुनिया से,
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
मैं यहाँ खुश हूँ
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
अब कभी भी
ये मिलन हमारा…

17 टिप्‍पणियां:

Divine India ने कहा…

कई सारे प्रश्न भी आये इसे पढ़कर और शायद उत्तर भी मिल गया… मगर एक बात तो है इसे पढ़ते हुए एक अजीब सा दर्द महसूस हो रहा है… आँखे नम हो गई हैं… बहुत खुबसूरती से लिखी गई कविता है जो सच कहा जाए तो भावनाओं पर थोड़ा अंकुस रखते हुए भी मिठास को बनाए हुए है दर्द के साथ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

दिव्याभ जी संवेदनाओं को समझने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।

Shastri JC Philip ने कहा…

उम्मीद है कि यह कविता कई लोगों के उनके दर्द के बीच एक आत्मिक शाति प्रदान करेगी

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत मार्मिक, संवेदनशील और गहरी रचना है. बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती चली गई.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

शास्त्री जी अगर ऐसा हो पाया तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा। आप मेरे ब्लॉग पर आये उसके लिये भी और रचना पंसद करने के लिये भी आपकी दिल से आभारी हूँ।

-----------------------------------

समीर जी रचना जिस गहराई सी लिखी जाये उस गहराई से पाठकों तक पहुँच जाये तो लेखन में प्रोत्साहन मिलता है। बहुत-बहुत धन्यवाद। स्नेह बनाये रखियेगा।

Reetesh Gupta ने कहा…

भावना जी,

बहुत ही भावपूर्ण रचना है ...बधाई

सुनीता शानू ने कहा…

बहुत दर्द है भावना जी इस कविता में उसे महसूस करके आँखें भर आई है...आपने कवि मन को छू लिया सचमुच बेहद अच्छी रचना है जो इस दर्द से गुजरा है उसकी बात तो अलह है जो नही गुजरा वो भी महसूस कर सकता है आपके भाव पढ़के...

सुनीता(शानू)

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

भावना जी.
कविता मष्तिष्क में सन्नाटा भर देती है, आपकी पंक्तियों का दर्द सीधे हृदय के भीतर पैठता है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

रीतेश जी बहुत-बहुत धन्यवाद।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

शानू जी दिल की गहराई से लिखी इस रचना को आपने पहचाना उसके लिये शुक्रिया। स्नेह बनाये रखियेगा।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

राजीव जी कुछ दर्द जीवन में ऐसे भी मिलते हैं जिनको भुलाये नहीं भूला जा सकता, फिर वही दर्द कुछ इस तरह छटपटाने लगते हैं ...

Unknown ने कहा…

एक ऐसी कविता जिसे पढ़ने के बााद जो संववेदनाएं आती है वो निःशब्द होती है, और वही मै हो गई हूँ|

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

कंचन जी आभारी हूँ।

Unknown ने कहा…

ऐसा लगता है कि आपने कविता के रूप में अपना दिल ही शब्दों के रूप में उतार दिया है। बहुत ही ममस्पर्शी है कविता की हरेक पंक्ति। बहुत अच्छा चुनाव है सारथी का। बधाई।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

रवीन्द्र जी कभी-कभी जीवन में दिल को बहुत चोट पहुँचती है जिनके द्वारा बने घावों की गहराई को नापना नामुमकिन होता है ऐसा ही है ये दर्द...
आपका और सारथी का भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

mamta ने कहा…

दिल को छू गयी क्यूंकि इस दर्द को महसूस किया है।
सारथी के जरिये आपकी रचना पढी ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

ममता जी रचना पंसद आई उसके लिये बहुत-बहुत शुक्रिया।