अब ये दुनिया नहीं है भाती
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
है बड़ी बेचैनी मन में,
नफ़रत फैली है जन-जन में,
नींद भी अब तो नहीं है आती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
खून-खराबा है गलियों में,
छिपे हुए हैं बम कलियों में,
है फटती धरती की छाती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
है बड़ी बेचैनी मन में,
नफ़रत फैली है जन-जन में,
नींद भी अब तो नहीं है आती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
11 टिप्पणियां:
मन में ही सुख सारे बैठे
कहीं नहीं समाधान मिल पाता
भेजो चाहे बात भली सी
चिठ्ठी सारी लौट ही आती
बहुत बढिया रचना। ऐसे ही लिखते रहे।
बहुत अच्छी पाती लिख डाली भावना जी --
मेरी भी कुछ ऐसी ही इच्छा हो रही है !
लिखती रहेँ
स स्नेह,
-- लावण्या
एसा लगता है जैसे इश्वर को पाति लिखी गई है बहुत ही सच्चे दिल से लिकली हुई भावनायें है,...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती है भावना जी,...बधाई!
सुनीता(शानू)
आज दुनिया मे जो कुछ भी हो रहा है आपकी ये पाती वही दर्शाती है। बहुत अच्छा।
बहुत सुन्दर भावों से ओत-ओत रचना है।बधाई।
उज़ड़ गये हैं घर व आँगन,
छूट गये अपनों के दामन,
यही देख के मैं घबराती,
तभी तुम्हें लिक्खी है पाती।
आज के हालातों को दर्शाती एक गंभीर रचना के लिये बधाई. बहुत सुंदर.
जब हम स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे थे तो हमारे बहुत से पत्र-मित्र हुआ करते थे। हम उन्हें लंबी-लंबी पाती लिखा करते थे। अब तो वह परंपरा ही खत्म हो गई है। संचार क्रांति के इस युग में लोगों की लिखने की आदत ही छूटती जा रही है। इसलिये आज जब आपने पाती लिखने की बात कही तो बहुत सी पुरानी यादें ताजा हो गईं। बहुत अच्छा लगा।
गंभीर विषयों पर तीक्ष्ण पाती…।
Aadarniya dr bhawna ji,
namaskar. abhi khuch der pehle mene aapke blog par aapki nai rachna padhi, kafi sunder lagi. ek aam admi jo ki khun kharbe, dango ke bhich raheta, uske maan me aisi he soch hoti hei, jisko ki aapne apne sabdo me dhal diya hei. aap vastav me ek bahut he badhiya rachna kar hei, jo ke maan ke bhawnawo ko apne sabdo rupi motiyo ki mala me piro dete hei.
ek baar phir se aapko badhiya
--
narendra purohit
सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद.देरी से लिखने के लिये माफी चाहती हूँ।
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