आज़ एक खबर पढ़ी, पढ़कर हमारी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। खबर थी कि अब पी-एच० डी० और एम० फिल० की डिग्री लेकर भी आपको नेट की परीक्षा देनी होगी ऐसा विचार किया जा रहा, अब जब विचार किया जा रहा है तो उसको पूरा भी होते कहाँ देर लगेगी वैसे ही क्या बेरोज़गारी कम है भारत में जो अब और बढ़ाने के रास्ते खोज़े जा रहे ,हैं क्या पी-एच० डी० और एम० फिल० करना इतना आसान है मुझसे पूछो मैंने कितने पापड़ बेले हैं अपनी पी-एच० डी० पूरा करने के लिये तब जाकर इस डिग्री को हासिल किया है, पूरा किया है अपना ख्वाब डिग्री कॉलेज़ में जॉब करने का।
अगर ये नेट परीक्षा पहले से ही होती तो अच्छा था हम भी देते, हो सकता है अभी भी अच्छा हो, पर अब हम जैसों का क्या?
अब मैं यहाँ युगांडा में हूँ जॉब कर रही हूँ वैसे तो सैटल्ड हूँ अपने वतन से भी जुड़ी हूँ ब्लॉग के माध्यम से लेकिन कभी-कभी एक हूक सी उठती जब अपने वतन की याद आती है तो मन करता है कि सब कुछ छोड़कर चली जाऊँ अपने वतन की छाँव में, पर अब ये खबर पढ़कर तो लगता है वो छाँव मुझे अब कभी भी नसीब नहीं होगी, क्या मैं भारत जाकर पहले नेट का पेपर दूँ? फिर से पढ़ूँ? तो मतलब ये हुआ की मेरी इतने सालों की नौकरी, मेरी इतने सालों की पढ़ाई सब बेकार थी और मैं घर में बैठकर मक्खियाँ मारूँ, नहीं ये सब कैसे कर सकूँगी पढ़ना पढ़ाना मेरी जिंदगी की साँसे है, मेरी धड़कन है तो क्या मैं अपनी धड़कन के बिना जिंदा रह पाऊँगी ? अब मैं बहुत असमंजस में हूँ कि क्या कभी मैं अपना ख्वाब पूरा कर पाऊँगी...
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डॉ० भावना
मेरा आशय किसी को भी आहत करने का नहीं था, जो बात इस समाचार को पढ़कर मेरे दिल में आई वही मैंने आप दोस्तों से शेयर करना चाही ....
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11 टिप्पणियां:
भावना आपका दर्द समझ रहे है। पर जहाँ तक हमे पता है कि विदेशों मे भी जब तक वहां कि परीक्षा पास ना करें तब तक वहां जॉब नही कर सकते है भले ही आप कितने ही qualified क्यों ना हो।तो जो हिन्दुस्तानी वो चाहे डॉक्टर हो या कुछ और उन्हें भी तो विदेशों मे जाकर दोबारा इम्तिहान देना पड़ता है ना।
दिल छोटा न करें-घर लौटने के हजार रास्ते होते हैं. शुभकामनाऐं.
जी सुना तो मैंने भी कुछ ऐसा ही हैं , लेकिन आपकी पीड़ा मैं समझ सकता हूँ ... आप अकेली नहीं हैं इस बदलाव को झेलने के लिए .....कई इसी पंक्ति में खडे हैं .
और मिटटी दूर कहाँ है .....दूर तो आप हैं ...
परीक्षाओं से भगवान् बचाए .... ख़ास रूप से नेट &GATE ....
ममता आपका ये कहना कुछ हद तक तो सही है पर पूरी तरह से नहीं। डॉक्टर, इंजीनियर एवं सी० ए० आदि के संबंध में तो परीक्षा देनी पड़ती है किन्तु मैं तो अपनी बात कर रही थी। भारत से हिंदी में पी-एच० डी० करने के बाद विदेश में हिन्दी अध्यापन के पद के लिये कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती। ऐसी स्थिति में यदि अपने ही देश में नये नियम लागू होने के कारण हम अयोग्य हो जायें तो ये हमारी विडंबना ही तो होगी।
समीर जी घर तो हमेशा घर ही होता है उसके लिये कभी रास्ते बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती न ही उन रास्तों को भूला जाता। मगर आश्चर्य इस बात पर हुआ कि यहाँ परदेस में अपने देश की शिक्षा के आधार पर तो अध्यापन का पद मिल जाता है किन्तु वही योग्यता इस नये नियम के लागू होने के बाद अपने ही देश में अयोग्यता बन जायेगी।
मनीष जी आपने मेरी इस पीड़ा को समझा उसके लिये धन्यवाद। मेरा इशारा भी मेरे जैसे अन्य सभी साथियों की ओर ही था...
जहाँ तक परीक्षा की बात आपने कही वो बिल्कुल सही कही, क्योंकि कौन जानता है कल फिर कोई नया नियम बन जाये जिसमें नेट के बाद भी फिर कोई ओर परीक्षा देने का प्रावधान हो जाये...
सच लिखा है आपने
aapne ek samvedansheel mudde ko uthaaya hai.
yah sab hamaare yahaan prachlit laalfitaashaahi ka hi parinaam hai.
समझ में नहीं आता कि परीक्षाऐं लोगों के लिऐ बनी हैं या लोग परीक्षाओं के लिये..
स्वागत है आपका अपने वतन में....
mam kai logon ke yahi haal hai kai ke sapne tute hai
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