
कफन में लिपटे…
अपने बेटे को देख !
माँ का कलेज़ा फट पड़ा !
आँसू आँख से नहीं
दिल से बहे थे…
ऊँगलियाँ थी कि…
उसके चेहरे से
नहीं हटती…
मुँह से बस यही
आवाज़ निकली !
वाह मेरे लाल !
मुझे नाज़ है तुझ पर
बचा लिया तूने कितनी ही…
माँ की गोद को उज़ड़ने से…
बचा लिया तूने कितनी ही…
पत्नियों के मांग का सिंदूर…
किसी पिता का दुलार !
किसी घर का अकेला चिराग !
जो नहीं बच सके उनके लिये …
रोता है मेरा दिल…
मेरे लाल !
तू फिर आना…
अगले जन्म में भी तू
मेरी ही कोख से जन्म लेना…
फक्र है मुझे तुझ पे !
अपने बेटे को देख !
माँ का कलेज़ा फट पड़ा !
आँसू आँख से नहीं
दिल से बहे थे…
ऊँगलियाँ थी कि…
उसके चेहरे से
नहीं हटती…
मुँह से बस यही
आवाज़ निकली !
वाह मेरे लाल !
मुझे नाज़ है तुझ पर
बचा लिया तूने कितनी ही…
माँ की गोद को उज़ड़ने से…
बचा लिया तूने कितनी ही…
पत्नियों के मांग का सिंदूर…
किसी पिता का दुलार !
किसी घर का अकेला चिराग !
जो नहीं बच सके उनके लिये …
रोता है मेरा दिल…
मेरे लाल !
तू फिर आना…
अगले जन्म में भी तू
मेरी ही कोख से जन्म लेना…
फक्र है मुझे तुझ पे !
Dr.Bhawna