मधुर यादों के साथ सपरिवार भारत लौटे, उन्हीं यादों में से कुछ यादें आप सब लोगों के साथ बाँटना चाहूँगी।
सबसे पहले बात करते हैं अम्माजी की जी हाँ हम उन्हें अम्माजी का सम्बोधन देते हैं क्यों? क्योंकि हमारे श्वसुर जी भी उनको अम्माजी जो कहते हैं अम्माजी जानी-मानी लेखिका, कवयित्री,शायरा, सितार वादिका, कला में पारंगत और भी ना जाने कितनी खूबियों की धनी हैं हमारी अम्माजी। जिनका पूरा नाम लीलावती बंसल है जो गाज़ियाबाद में रहती हैं ,उम्र है ९० खूब लिखती पढ़ती हैं किन्तु चलने में अब थोड़ा परेशानी है तो क्या हुआ लेकिन हौंसले तो बहुत बुलन्द हैं। कितने ही साल अमेरिका में रहने के बाद अपने वतन में वापिस आ गयी हैं अपने पतिदेव के साथ। बाकी सभी बेटे बहुएँ अमेरिका में हैं। अम्माजी कम्यूटर पर काम नहीं कर सकतीं मैं उनकी रचनाओं को आप सबके सामने लाना चाहती हूँ शायद आप सबको अच्छा लगे। उनकी किताबों की संख्या बहुत है जिसकी चर्चा अगली पोस्ट में करेंगे तब तक आप उनकी लिखी एक गज़ल का आन्नद लीजिये…
लीलावती बंसल जी की एक
सबसे पहले बात करते हैं अम्माजी की जी हाँ हम उन्हें अम्माजी का सम्बोधन देते हैं क्यों? क्योंकि हमारे श्वसुर जी भी उनको अम्माजी जो कहते हैं अम्माजी जानी-मानी लेखिका, कवयित्री,शायरा, सितार वादिका, कला में पारंगत और भी ना जाने कितनी खूबियों की धनी हैं हमारी अम्माजी। जिनका पूरा नाम लीलावती बंसल है जो गाज़ियाबाद में रहती हैं ,उम्र है ९० खूब लिखती पढ़ती हैं किन्तु चलने में अब थोड़ा परेशानी है तो क्या हुआ लेकिन हौंसले तो बहुत बुलन्द हैं। कितने ही साल अमेरिका में रहने के बाद अपने वतन में वापिस आ गयी हैं अपने पतिदेव के साथ। बाकी सभी बेटे बहुएँ अमेरिका में हैं। अम्माजी कम्यूटर पर काम नहीं कर सकतीं मैं उनकी रचनाओं को आप सबके सामने लाना चाहती हूँ शायद आप सबको अच्छा लगे। उनकी किताबों की संख्या बहुत है जिसकी चर्चा अगली पोस्ट में करेंगे तब तक आप उनकी लिखी एक गज़ल का आन्नद लीजिये…
लीलावती बंसल जी की एक
गज़ल
माना कि कुछ नहीं हूँ मैं,लेकिन भरम तो है
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।
दौलत खुशी की मुझपे नहीं है तो क्या हुआ
मुझपे मगर ये मेरा ख़ज़ाना-ए-गम तो है।
माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।
पूछा उन्होंने हाल तो कहना पड़ा मुझे
शिद्दत ग़मे-हयात की थोड़ी-सी कम तो है।
चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।
दौलत खुशी की मुझपे नहीं है तो क्या हुआ
मुझपे मगर ये मेरा ख़ज़ाना-ए-गम तो है।
माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।
पूछा उन्होंने हाल तो कहना पड़ा मुझे
शिद्दत ग़मे-हयात की थोड़ी-सी कम तो है।
चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
प्रस्तुतकर्त्ता - भावना कुँअर
12 टिप्पणियां:
bahut khoob achhi lagi ye ghazal
इस पर भी मेरे हाथ में कलम तो है.........कलम पर गर्व करने वाली अम्मा जी को प्रणाम। सशक्त रचना। कहना सूरज को दीपक दिखाना होगा।
अम्मा जी को प्रणाम... अपने देश का तो क्या कहना...
bahut achhe gazal , likhtee rahein.
चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
अम्मा जी की बात में वाकई बहुत दम है. हमारा नमन भिजवाऐं उन्हें और उनकी रचनाऐं पढ़ने का मन रहेगा.
आपकी भारत यात्रा मंगलमय रही, जानकर अच्छा लगा. शुभकामनाऐं.
तभी आप ब्लॉग जगत से इन दिनों नदारद थी .....खैर ये बेहद पसंद आया
चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
टेम्पलेट में कुछ सुधार की जरुरत लगती है ....कुछ कलर कॉम्बिनेशन गड़बड़ है
आपका ब्लॉग ठीक से पढ़ा नही जा रहा है ...
माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।
बहुत बढ़िया बात लगी यह ...इन्तजार रहेगा और भी इनके लिखे का
वाह ! अम्मा जी ने बहुत खूब लिखा है । आशा है भविष्य में भी उनका लिखा पढ़वाती रहेंगी ।
घुघूती बासूती
अम्मा जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाये..
वाह-वाह भावना जी
क्या मिलवाया आपने अम्मां जी से
उन्हें प्रणाम और आपको साधुवाद
बहुत अच्छी गज़ल
इसके नीचे से लेखिका शब्द हटा दें
शीर्षक यदि यों दें तो शायद अधिक प्रभावी रहेगा
'लीलावती बंसल की एक गजल'
मैंने ये अनाधिकार चेष्टा तो नहीं कर ली ?
आप सबका स्नेह यूँ ही बना रहा तो अवश्य ही मैं अम्माजी की और खूबियों को आपके साथ बाँटने का पूरा प्रयास करूँगी। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
bahut hi achchha kar rahi hai aap.
yogendra ji ka kahana sahi hai, lekin lekhika ke sath-sath ve hain koun yah bhi aana chahiye.
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