माँ! कहाँ हो तुम?
कहीं भी दिखती क्यूँ नहीं?
माँ मेरी आँखों में,
दर्द होने लगा है…
तुम्हारी राह निहारते-निहारते
पर तुम नहीं आती!
माँ मुझे नींद आ रही है,
पर तुम तो जानती हो ना…
तुम्हारी गोद के बिना…
मैं सो नहीं पाता।
माँ मुझे भूख भी लगी है,
पर मुझे तुम्हारे ही हाथ से…
खाना पंसद है ना!
अब मैं बहुत थक गया हूँ…
पापा तुम भी नहीं आये!
तुम जानते हो ना पापा…
मैं तो बस तुम्हारे साथ ही घूमने जाता हूँ।
तुम्हारे बिना मुझे कहीं भी जाना अच्छा नहीं लगता!
फिर भी तुम क्यूँ नहीं आते?
पापा मुझे कोई खिलौना नहीं चाहिये!
ना ही टॉफी, ना चॉकलेट…
चाहिए तो बस आप दोनों का साथ।
आप दोनों कहाँ छिप गये?
आपको पता है ना मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है!
यहाँ चारों तरफ बहुत अँधेरा है…
यहाँ बहुत डरावनी डरावनी आवाजें आ रही हैं…
धुँए जैसी कोई चीज़ है यहाँ,
जिससे मेरा दम घुट रहा है!
यहाँ सब लोग जमीन में ही सोए पड़े हैं …
कोई भी हिलता डुलता नहीं है…
ना ही कोई किसी को आवाज़ ही देता,
माँ ना जाने यहाँ इतनी खामोशी क्यूँ है!
इक अज़ीब सा सन्नाटा…
मेरे चारों ओर पसरा पड़ा है,
और बाहर पटाखे चलने जैसी आवाजे आ रही हैं।
माँ मुझे बहुत डर लग रहा है,
आप दोनों कहाँ छिपे हैं?
प्लीज़ बाहर आ जाईये!
मैं तो अभी बहुत छोटा हूँ…
आप लोगों को ढूँढ भी नहीं सकता!
माँ! पापा! कुछ लोग बाहर बात कर रहें हैं…
कह रहें है आप दोनों को गोली लगी है…
आंतकियों की गोली…
माँ ये आंतकी क्या होते हैं?
पापा ये गोली क्या होती है?
क्या गोली लगने से…
दूर चले जाते हैं?
माँ कहो ना इन आंतकियों से,
एक गोली मुझे भी मार दें,
ताकि मैं भी आपके पास आ जाऊँ!
मुझे नहीं आता आपके बिना रहना!
माँ नहीं आता…
कहीं भी दिखती क्यूँ नहीं?
माँ मेरी आँखों में,
दर्द होने लगा है…
तुम्हारी राह निहारते-निहारते
पर तुम नहीं आती!
माँ मुझे नींद आ रही है,
पर तुम तो जानती हो ना…
तुम्हारी गोद के बिना…
मैं सो नहीं पाता।
माँ मुझे भूख भी लगी है,
पर मुझे तुम्हारे ही हाथ से…
खाना पंसद है ना!
अब मैं बहुत थक गया हूँ…
पापा तुम भी नहीं आये!
तुम जानते हो ना पापा…
मैं तो बस तुम्हारे साथ ही घूमने जाता हूँ।
तुम्हारे बिना मुझे कहीं भी जाना अच्छा नहीं लगता!
फिर भी तुम क्यूँ नहीं आते?
पापा मुझे कोई खिलौना नहीं चाहिये!
ना ही टॉफी, ना चॉकलेट…
चाहिए तो बस आप दोनों का साथ।
आप दोनों कहाँ छिप गये?
आपको पता है ना मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है!
यहाँ चारों तरफ बहुत अँधेरा है…
यहाँ बहुत डरावनी डरावनी आवाजें आ रही हैं…
धुँए जैसी कोई चीज़ है यहाँ,
जिससे मेरा दम घुट रहा है!
यहाँ सब लोग जमीन में ही सोए पड़े हैं …
कोई भी हिलता डुलता नहीं है…
ना ही कोई किसी को आवाज़ ही देता,
माँ ना जाने यहाँ इतनी खामोशी क्यूँ है!
इक अज़ीब सा सन्नाटा…
मेरे चारों ओर पसरा पड़ा है,
और बाहर पटाखे चलने जैसी आवाजे आ रही हैं।
माँ मुझे बहुत डर लग रहा है,
आप दोनों कहाँ छिपे हैं?
प्लीज़ बाहर आ जाईये!
मैं तो अभी बहुत छोटा हूँ…
आप लोगों को ढूँढ भी नहीं सकता!
माँ! पापा! कुछ लोग बाहर बात कर रहें हैं…
कह रहें है आप दोनों को गोली लगी है…
आंतकियों की गोली…
माँ ये आंतकी क्या होते हैं?
पापा ये गोली क्या होती है?
क्या गोली लगने से…
दूर चले जाते हैं?
माँ कहो ना इन आंतकियों से,
एक गोली मुझे भी मार दें,
ताकि मैं भी आपके पास आ जाऊँ!
मुझे नहीं आता आपके बिना रहना!
माँ नहीं आता…
डॉ० भावना
31 टिप्पणियां:
Doctor!!
bacho ke muh se aise mat bulbao ki atanki use bhi goli mar de....jine ki lapat dalo uname...vo roshani hai...unhe lapaton me nahao....behatr tarike se likha gaya ek nirashawadi kavita.
rachna ka bhav bahut sundar haiं. samvedna ki abhivyakti prakhar hai.-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
माँ कहो ना इन आंतकियों से,
एक गोली मुझे भी मार दें,
ताकि मैं भी आपके पास आ जाऊँ!
मुझे नहीं आता आपके बिना रहना!
माँ नहीं आता…
बहुत ही भावुक कविता लिखी है आप ने, हम बेठे तो परदेश मे है लेकिन हमारा सब कुछ तो देश मै है इस लिये वहा की हर बात का हम पर बहुत असर पडता है.
धन्यवाद
par maa chup hai....
uske kuch bete hi eska karan hai
par maa chup hai ........
uske kuch bete hi karan hai
par maa chup hai ..... uske kuch bete hi eska karan hai.....
आप की राय अपेक्षित हैं,------ दिलों में लावा तो था लेकिन अल्फाज नहीं मिल रहे थे । सीनों मे सदमें तो थे मगर आवाजें जैसे खो गई थी। दिमागों में तेजाब भी उमङा लेकिन खबङों के नक्कारखाने में सूखकर रह गया । कुछ रोशन दिमाग लोग मोमबत्तियों लेकर निकले पर उनकी रोशनी भी शहरों के महंगे इलाकों से आगे कहां जा पाई । मुंबई की घटना के बाद आतंकवाद को लेकर पहली बार देश के अभिजात्य वर्गों की और से इतनी सशंक्त प्रतिक्रियाये सामने आयी हैं।नेताओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं। और अक्सर हाजिर जवाबी भारतीय नेता चुप्पी साधे हुए हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार नेताओं के चरित्र पर इस तरह से सवाल खङे हुए हैं।इस सवाल को लेकर मैंने भी एक अभियाण चलाया हैं। उसकी सफलता आप सबों के सहयोग पर निर्भर हैं।यह सवाल देश के तमाम वर्गो से हैं। खेल की दुनिया में सचिन,सौरभ,कुबंले ,कपिल,और अभिनव बिद्रा जैसे हस्ति पैदा हो रहे हैं । अंतरिक्ष की दुनिया में कल्पना चावला पैदा हो रही हैं,।व्यवसाय के क्षेत्र में मित्तल,अंबानी और टाटा जैसी हस्ती पैदा हुए हैं,आई टी के क्षेत्र में नरायण मुर्ति और प्रेम जी को कौन नही जानता हैं।साहित्य की बात करे तो विक्रम सेठ ,अरुणधति राय्,सलमान रुसदी जैसे विभूति परचम लहराय रहे हैं। कला के क्षेत्र में एम0एफ0हुसैन और संगीत की दुनिया में पंडित रविशंकर को किसी पहचान की जरुरत नही हैं।अर्थशास्त्र की दुनिया में अमर्त सेन ,पेप्सी के चीफ इंदिरा नियू और सी0टी0 बैक के चीफ विक्रम पंडित जैसे लाखो नाम हैं जिन पर भारता मां गर्व करती हैं। लेकिन भारत मां की कोख गांधी,नेहरु,पटेल,शास्त्री और बराक ओमावा जैसी राजनैतिक हस्ति को पैदा करने से क्यों मुख मोङ ली हैं।मेरा सवाल आप सबों से यही हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थति बदली जो भारतीय लोकतंत्र में ऐसे राजनेताओं की जन्म से पहले ही भूर्ण हत्या होने लगी।क्या हम सब राजनीत को जाति, धर्म और मजहब से उपर उठते देखना चाहते हैं।सवाल के साथ साथ आपको जवाब भी मिल गया होगा। दिल पर हाथ रख कर जरा सोचिए की आप जिन नेताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उनका जन्म ही जाति धर्म और मजहब के कोख से हुआ हैं और उसको हमलोगो ने नेता बनाया हैं।ऐसे में इस आक्रोश का कोई मतलव हैं क्या। रगों में दौङने फिरने के हम नही कायल । ,जब आंख ही से न टपके तो फिर लहू क्या हैं। ई0टी0भी0पटना
ठीक बात है परदेस में हैं तो क्या हुआ? देश तो आपका ही है। सहज-सरल शब्दों में आपकी यह कविता काफी अच्छी है। शुभकामनाएं।
आलोक जी आपकी बात सही है, लेकिन यह रचना मैंने उस बालक के मन की भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखी है जो इतना अबोध होता है कि वह आग को भी पकड़ना चाहता है और अबोध बच्चा किसी भी परिस्थिति में अपने माता-पिता के विरह को सह नहीं पाता वह हर हाल में उनके साथ ही रहना चाहता है ...
अशोक जी ये दिल चीज़ ही ऐसी होती है जो दर्द को देखते ही, सुनते ही रो देता है...
राज़ जी बिल्कुल सही कहा आपने अपना देश अपना ही होता है उसका दुख, दर्द कहाँ देखा जाता है...
राहुल जी माँ तो खून के आँसू रो रही है अपने बेटों की इन हरकतों को देखकर और अपने कितने ही बेटे, बेटियों को हमेशा के लिए सोता देखकर ...
पहली बार आपको ब्लॉग पर देखा बहुत-बहुत धन्यवाद...
संतोष जी आपकी बात बिल्कुल सही है...
aapki ye nazm padkar main bahut gahre soch mein pad gaya ..
bacho ke mukh se maut ki baat kahkar aapne meri aankhe nam kar di
bahut accha likhti hai aap
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
aapki ye nazm padkar main bahut gahre soch mein pad gaya ..
bacho ke mukh se maut ki baat kahkar aapne meri aankhe nam kar di
bahut accha likhti hai aap
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
bahut sundar hai. apaka sanyojan bahut khub hai.mumbai ki dahashat ko apane ek bachche ke madhym se achchha prastut kiya hai.samay itana kharab aa gaya hai ki sab ki chinta apane sahajan ke prati badh gai hai.shukriya.
बहुत भावभीनी और सुन्दर रचना है।बधाई।
Behad bhavpoorn....Apne mah ke bhavo ko isi tarah piroti rahiye....
Badhai.
बहुत भावुक कविता लिखी है
भावना जी,बहुत ही मार्मिक रचना है ,संवेदना से भरपूर !!!
बहुत ही मार्मिक रचना लिखी हैं।
डाक्टर साहेब ,आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी दी धन्यवाद /मेरा तात्पर्य ये था की मगरमच्छों की भूंख मिटाने नदी में ""उनको ""धक्का मार देता /मगर फिर विचार बदल दिया की कहीं मुझे ही धक्का न मार दिया जाए
पुरूषोत्तम जी, विजय कुमार जी, बहादुर पटेल जी, परमजीत जी, पूनम जी, श्रीवास्तव जी, विक्रांत जी, सुशील कुमार जी, आप सबकी बहुत आभारी हूँ कि मेरे भाव आप सब तक पहुँचे स्नेह बनाये रखियेगा...
बृजमोहन जी अब मैं आपका तात्पर्य बहुत अच्छी तरह समझ गयी ...धन्यवाद ...अच्छा लिखा आपने ...वैसे विचार बदलना अच्छा ही रहा क्योंकि आज का जमाना आपको पता ही है ... :)
Respected bhavnaji,
Apne bombay blast ki durghatna ka bachchon par kya asar ho raha hai...vakayi ye kavita aur uske pahle likhe gaye apke shbd padh kar man dravit ho utha...Itnee sookshma drishti se likhne ke liye badhai.Ap mere blog par bhee ayen .apka svagat hai.
Poonam
Alok ji ki baat se sahmat nahin hoon. kavita nirashawadi nahin varan ek atyant kathin daur ka marmik chitran hai.
achchi post ke liye aapka shukria
वाह.. क्या बात है... संवेदना से भरपूर मार्मिक भावाभिव्यक्ति... साधुवाद..
बहुत खूब, यह रचना बहुत ही प्रभावशाली है
आपकी कलम निरंतर चलती रहे यही प्रार्थना है.
हर बार की तरह आपकी लेखनी ने जादू बिखेरा है
बहुत सुंदर धनयबाद
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