26 अक्तूबर 2010

आँखे















आँखे जाने क्यों


भूल गई पलकों को झपकना...

क्यों पसंद आने लगा इनको

आँखों में जीते-जागते

सपनों के साथ खिलवाड़ करना …

क्यों नहीं हो जाती बंद

सदा के लिए

ताकि ना पड़े इन्हें किसी

असम्भव को रोकना ।


Bhawna

11 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

आँखों के काम में ख़लल ना डालें अच्छी रचना

Udan Tashtari ने कहा…

ओह नहीं...


क्या भाव हैं..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क्यों नहीं हो जाती बंद
सदा के लिए
ताकि ना पड़े इन्हें किसी
असम्भव को रोकना ...

बस यही तो इंसान के हाथ में नही होता ... ये दर्द तो सहना पड़ता है ....
गहराई लिए लिखा है ...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bhawnaji bahut hi sundar bhav vali kavita badhai

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

very nice post badhai

kshama ने कहा…

क्यों नहीं हो जाती बंद

सदा के लिए

ताकि ना पड़े इन्हें किसी

असम्भव को रोकना ।

Aaisa kyon? Ek baar to dil dhak-se ho gaya!

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

BAHUT HEE SUNDAR BHAW...SUNDAR RACHNA KE LIYE BADHAYI.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

सुन्दर और संवेदनशील रचना---हार्दिक बधाई।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर।
तुम इतनी देर लगाया न करो आने में
कि भूल जाये कोई पलक झपकाना भी

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

man ka itna smvedansheel hona bhee theek nahi..bahut hee gaharai liye hui kavita

सहज साहित्य ने कहा…

खुली आँखों से देखो ये दुनिया स्वप्न सदा इनमें सदा मुस्काएँ॥ जीवन की बगिया महके हमेशा खुदा किसी को न बुरे दिन दिखाए ।