मेरे सबसे करीब
मेरा जिगरी दोस्त
अँधेरा...
अक्सर मेरे पास
आता है
और
छिपकर बैठ जाता है
मेरे मन के एकल कोने में...
घण्टों मुझसे बातें करता है
अकेले में
जब कोई नहीं होता...
सुबह से शाम
कैसे होती है
पता ही नहीं चलता...
और फिर अचानक...
आहट सुन
संध्या की आहट सुन
दूर कहीं छिप जाता है
झाडियों के पीछे...
और इंतज़ार करता है
सुबह होने का
फिर...
चिड़ियों की चहचहाट सुन
दौड़कर आता है
और खोज़ता है
मेरे मन का वही कोना
छिपकर बैठ जाने के लिए...
Bhawna
14 टिप्पणियां:
यह जिगरी दोस्त कभी धोखा नहीं देता ... सुन्दर रचना ..
वाह क्या दोस्त बनाया है……………सुन्दर भावाव्यक्ति।
दर्दीली रचना ....
अँधेरा...
मेरे मन के एकल कोने में...
घण्टों मुझसे बातें करता है
अकेले में
जब कोई नहीं होता...
दिल का दर्द ....अँधेरे द्वारा व्यक्त करती दर्दीली रचना
क्यों यह मन करता अँधेरे से बातें ....?
हरदीप
सचमुच यह अँधेरा जिगरी दोस्त ही होता है । जब दूसरे दोस्त किनारा कर जाते हैं , यही एक ऐसा आत्मीय बच रहता है , जो सारे दुखों और ज़ख़्मों को सहलाता है , उदास मन को बहलाता है ।यदि इस सृष्टि में अँधेरा न होता तो आदमी का जीना मुहाल हो जाता ।बहुत गहरा चिन्तन , बहुत परिपक्व रचना । आपको नितान्त आत्मीय बधाई !
sach se prda utha diya hai aapne is drd bhri rchnaa me ...akhtar khan akela kota rajsthan
और खोज़ता है
मेरे मन का वही कोना
छिपकर बैठ जाने के लिए...
-वाह!! पूरा दर्द उकेर दिया...
sahi kaha kabhi kabhim aesa hi hota hai
sunder abhivyakti
rachana
सुन्दर अभिवयक्ति....
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
BAHUT KHUB LIKHA BHAWNA JI . AAPNE.
--
narendra purohit
bhaavmayi rachna...
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।धन्यवाद ।
मन के गहन भावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है..
सुन्दर भावाव्यक्ति।.....
मार्मिक अभिव्यक्ति है... इन्ही संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती मेरी कुछ पंक्तियां-
चेहरे पर बर्फ़ीली मुस्कान लिये
काली रात का बाना ओढे
अपनी ठन्डी बाहों मे लपेट कर
मुझे अपना साथी बना लेती है
मेरी तन्हाई
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