21 सितंबर 2012

ऐसी मैं सीप


































Bhawna

11 टिप्‍पणियां:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता |

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा- भावपूर्ण!!

सहज साहित्य ने कहा…

्बेहद सुन्दर और नए अन्दाज़ की कविता । सचमुच मोती की तरह आब वाली । बहुत बधाई !

सारिका मुकेश ने कहा…

वर्षा की एक बुंद सीप के गर्भ में रहकर मोती बनती है और फिर एक दिन उससे जुदा हो किसी का सौंदर्य बढ़ाती है...पर सीप के दर्द को शायद ही कोई समझे...उसी दर्द को बयां करती आपकी यह भावपूर्ण रचना मन को भा गई...हार्दिक बधाई!!
सारिका मुकेश

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भावपूर्ण रचना ... मन को छूती है ...

somali ने कहा…

bahut sundar....

somali ने कहा…

bahut sundar....

सूबेदार ने कहा…

बहुत खूब सूरत ब्लॉग और खूब सूरत रचना बहुत -बहुत धन्यवाद.

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

behad sundar prastuti,'pir parayee jane na.....

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

bahut khoob,umda rachna-'pir parayee jane na......

सीमा स्‍मृति ने कहा…

कितना भावपूर्ण लिखती हैं आप । कमाल है।