दुःखों की बस्तियों
में तो, बस आँसू का बसेरा है
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है।
वो देखो जी रहें हैं यूँ, न रोटी है न कपड़ा है
उन्हें मायूसियों के फिर, घने जंगल ने घेरा है।
नहीं रुख्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोड़ा है
ये आँखे राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है।
नजर आती नहीं कोई, किरण उम्मीद की उनको
मगर सेठों के घर में तो, सवेरा ही सवेरा है।
मिले कोई तो अब उनको, जो समझे हाले दिल उनका
न छेड़ो ये तराना तुम, ये मेरा है ये मेरा है।
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है।
वो देखो जी रहें हैं यूँ, न रोटी है न कपड़ा है
उन्हें मायूसियों के फिर, घने जंगल ने घेरा है।
नहीं रुख्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोड़ा है
ये आँखे राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है।
नजर आती नहीं कोई, किरण उम्मीद की उनको
मगर सेठों के घर में तो, सवेरा ही सवेरा है।
मिले कोई तो अब उनको, जो समझे हाले दिल उनका
न छेड़ो ये तराना तुम, ये मेरा है ये मेरा है।
Bhawna
7 टिप्पणियां:
मार्मिक कविता । ये पंक्तियाँ तो बहुत हृदयस्पर्शी हैं-नहीं रुख्सत हुई बेटी, न कंगन है न जोड़ा है
ये आँखे राह तकती हैं, विरासत में अँधेरा है।
भावनाएं बहुत सुंदर ,हृदयस्पर्शी हैं..बधाई
अत्यंत मार्मिक रचना।
बधाई डॉ० भावना
दुःखों की बस्तियों में तो, बस आँसू का बसेरा है
जिधर भी देखती हूँ मैं, मिला डूबा अँधेरा है।
वाह!! बहुत ख़ूब।
भावपूर्ण रचना, बधाई
भावपूर्ण रचना, बधाई
बहुत ही मार्मिक लिखा हैं,अच्छा लगा पैड कर।धन्यवाद
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