21 अगस्त 2006

प्यार की इमारत

मेरे जन्मदिन पर मेरे पति महाशय ने मुझे एक बहुत खुबसूरत तोहफा दिया जिसे मैं सहेजकर हमेशा अपने पास रखती हूँ वो शब्द जो उन्होंने मेरी तारीफ में कहे हैं उनसे अपनी साइट की शान बढाना चाहूँगी।


कभी मुझपे है प्यार आता कभी मुझसे शिकायत है,

न जाने प्यार करने की खुदा कैसी रिवायत है।


कभी मैं डूबता हूँ प्यार की गहराईयों तक भी,

मगर पाता तुझे ही हूँ वहाँ, कैसी कयामत है।


कोई भटका हो सहरा में और उसको झील मिल जाए,

तुझे पाकर लगा ऐसा, मिली ऐसी नियामत है।


मैं तुझको देखता था, सोचता था, बात करता था,

बडी मुश्किल से ये जाना, मुझे तुमसे मुहब्बत है।


दिलों की दफन है जिसमें मुहब्बत आज तक जिन्दा,

उसे हम ताज कहते है वो इक ऐसी इमारत है।

प्रगीत कुँअर

4 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

सुन्दर रचना लिखी है आपके लिये. बधाई

लिखी थी आपकी खातिर,सभी से आपने बाँटी
गज़ल ये खूबसूरत जो कुँअर जी की इनायत है

hemanshow ने कहा…

बहुत खूब डॉ बहन।

बातें है दरिया शब्दों और भावों का,
इन्हैं दिल से कहना एक इबादत है।

-- हिमांशु
www.kyari.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

भावना जी,

लगता है भावना की अभिव्यक्ति के क्षेत्र में आप के पति बहुत आगे हैं. बहुत बेहतरीन गज़ल है.

खलिश

बेनामी ने कहा…

Bhawna Ji,

Aapko mili ye gazal dil ko choo gayee... apne un se kahiyega... yadi unke paas aise hi kuchh or moti ho to hum se share karen... Wah wah...

Manish Jain