26 नवंबर 2006

फुरसत से घर में आना तुम



फुरसत से घर में आना तुम

और आके फिर ना जाना तुम


मन तितली बनकर डोल रहा

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।


अधरों में अब है प्यास जगी

बन झरना अब बह जाना तुम ।


बेरंग हुए इन हाथों में

बन मेहदी अब रच जाना तुम ।


पैरों में है जो सूनापन

महावर बन के सज जाना तुम ।


डॉ० भावना

13 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुंदर भाव हैं, भावना जी. बधाई.

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता। यह 'महावर' का मतलब पायल है क्या ?

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी, श्रीश जी बधाई के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। श्रीश जी आपके प्रश्न के उत्तर में,
उत्तर भारत में सुहागिनें जिस तरह सिन्दूर को माँग में, मेंहदी को हाथों व पैरों में लगाती हैं उसी तरह महावर भी पाँव में लगाया जाता है।

अनूप भार्गव ने कहा…

सुन्दर और प्यारी सी कविता है ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

अनूप जी हौसला अफ़जाई के लिये शुक्रिया।

बेनामी ने कहा…

bhawna ji namaskar,
aapki nai kavita bahut hi sunder lagi, virehe ka bhav aapne bahut hi sunder tarike se parstut kiya hei,. aur aapne jo hyuke likhe hei vo bhi bahut satik thay.

narendra

Upasthit ने कहा…

badhayi to upar ho hi gayi hai, main kya karun fir se... Ye akhiri pankti me "mahaavar" speed breaker jaisa lag raha hai, maje me chalti, masti me seedhi sapat sadak par chali ja rahi kavita ki gadi ko ek halkaa sa nahi accha khaasa hichkola martaa hua...(matra ek apurna sujhav hai yah)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

उपस्थित जी काफी पुरानी पोस्ट काफी देर बाद पढ़ी..... खैर.. बात रही आपकी भाषा में.. "गाड़ी, झटका, ब्रेक आदि..आदि " जैसा यहाँ कुछ भी नहीं है जो तुकान्त आप ढूँढ रहे हैं वो नीचे लिखे शब्दों में हैं उनमें नहीं जिनमें आप भटक रहे हैं आप अपनी भटकन को रास्ता दिखाईये नीचे लिखे तुकान्त से।

आना तुम
जाना तुम
बस जाना तुम
बह जाना तुम
रच जाना तुम
सज जाना तुम

Upasthit ने कहा…

Dr. sab apke diye gyan ke liye dhanyavad, abhaari hun, mujhe kya pataa tuk kahan milaya gaya hai apki kavita me.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 18 - 08 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज ... मैं अस्तित्त्व तम का मिटाने चला था

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

अधरों में अब है प्यास जगी
बन झरना अब बह जाना तुम ।

वाह!
बेहतरीन रचना!

सादर

vandana gupta ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर भावो को संजोया है। सुन्दर रचना।

vijay kumar sappatti ने कहा…

क्या बात है , बहुत ही सुन्दर लिखा है .. यादो को शब्द दे दिया है आपने . मन को छु गयी कुछ पंक्तिया . दिल से बधाई .

आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html