10 नवंबर 2008

प्रेम का पाठ

प्रिय पाठकों आज मैं आप सबके लिये अपनी मातृतुल्य संतोष कुँअर जी की एक रचना लेकर आई हूँ आशा है आप सबको पंसद आयेगी।
मम्मी जी को लिखने का बचपन से ही शौंक है। बाल-कविताएँ एवं कहानियाँ उनकी खास पंसदगी हैं। उनकी "प्यारे बच्चे प्यारे गीत" पुस्तक बच्चों को बहुत लुभाती है, अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ और बाल-गीत छपते रहते हैं आज़ भी वे लगातार लिख रहीं हैं मैं जब भारत उनके पास गई तो मैंने असंख्य कहानियाँ और बाल-गीत उनके पास देखे जिनको मैं अपने साथ लाने से ना रह पाई और जो भी मैंने अपनी इस बार की भारत यात्रा पर पाया उस सबको अपने मित्रों के साथ बाँटना भी चाहा शायद आप लोगों का स्नेह ही मुझे ऐसा करने को प्रेरित करता है ये रचना शायद बच्चों को पंसद आये इसी आशा में… शीर्षक है …


प्रेम का पाठ
मोहन-सोहन हैं दो भाई
उनमें होती बहुत लड़ाई
एक बार मामाजी आये
साथ कई गुब्बारे लाये
सूखे-सूखे, गीले-गीले
लाल-हरे और नीले-पीले
मोहन बोला-'सिर्फ मुझे दो।'
सोहन बोला-सिर्फ मुझे दो।'
छीन-झपट में इतने सारे
फूट गये प्यारे गुब्बारे
मामा ने तब यह समझाया
और प्रेम का पाठ पढ़ाया-
'वो जो बात-बात पर लड़ता
बना बनाया काम बिगड़ता।
संतोष कुँअर

15 टिप्‍पणियां:

जितेन्द़ भगत ने कहा…

बचपन में सि‍खाई गई बातें बहुत महत्‍वपूर्ण होती हैं-
'वो जो बात-बात पर लड़ता
बना बनाया काम बिगड़ता।

डॉ .अनुराग ने कहा…

मासूम सी कविता

makrand ने कहा…

bahut sunder rachana
kabhi humra blog padhen waqt ho to

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया सीख देती रचना. माता जी को नमन. आपका आभार.

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत प्यारी लगी यह रचना

पुनीत ओमर ने कहा…

ये पाठ सिर्फ़ बच्चों के लिए ही नही बड़ों के लिए भी समान उपयोगी है.

समयचक्र ने कहा…

सभी को सीख देती बढ़िया प्यारी रचना . धन्यवाद्.

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

भावना जी,
बहुंत संुदर और प्रेणादायक किवता है । सभी के िलए उपयोगी ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

sandhyagupta ने कहा…

Vaastav me bachchon ke liye likha jane wala saahitya hamesha se kuch upekshit sa raha hai.Is sthiti me koi bhi prayaas taaja hawa ke jhonke sa jaan padta hai.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बर्तमान में साहित्यकार बाल रचनाओं से दूर होते जारहे है और इस कारण बच्चे ईटिंग सुगर नो पापा और ट्विकल ट्विंकल लिटिल स्टार में उलझते जारहे है =आज बाल साहित्य की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि बच्चे कविताओं में रूचि लेकर भाषा की ओर आकर्षित हो =आज साहित्यकार सोचता है की में साहित्य में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करूं मगर बालमन इसको ग्रहण करने तैयार नहीं -बड़ों की ही समझ में नहीं आते ऐसे में रुचिकर बाल कविताओं की वर्तमान समय में बहुत उपयोगिता और आवश्यकता है /हम भी अपने घर आनेवाले को चाय पिलाकर बच्चे को बुलाकर ये न कहें कि बेटा अंकल को पोइम सुनाओ बल्कि ये कहें बेटा प्रेम का पाठ वाली कविता सुनाओ तो जरा

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह
बहुत सुंदर बाल कविता
आपकी प्रस्तुति को नमन

समीर सृज़न ने कहा…

achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...

ishq sultanpuri ने कहा…

shandar prastuteekaran
........sabhee rachanayen achchhee lageen.............

अवाम ने कहा…

घर और बचपन की याद दिला दी आपने तो. अब तो बचपन भी नहीं रहा.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद...