फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बन झरना अब बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बन मेहदी अब रच जाना तुम ।
पैरों में है जो सूनापन
महावर बन के सज जाना तुम ।
और आके फिर ना जाना तुम
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बन झरना अब बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बन मेहदी अब रच जाना तुम ।
पैरों में है जो सूनापन
महावर बन के सज जाना तुम ।
डॉ० भावना