लो आ गई एक और दीपावली, कुछ खट्टी –मीठी, पुरानी
यादों को लेकर जुड़े होंगे कुछ दिल पिछली दीपावली, तो कुछ टूटे भी होंगे,कुछ बिछड़े
होंगे तो कुछ मिलें
भी होंगे,कहीं खूब जगमगाएँ होंगे
कुछ दिए, तो कहीं
टिमटिमाएँ भर होंगे, उन्हीं
जज्बों को ले कुछ
दीए "दिल के दरमियाँ" द्वारा कुछ ऐसे-
सेदोका के दीए
भरा था लबालब
तुम्हारी ही यादों से
जो जल उठा
सँभाला जिसे
वर्षों
बड़े ही जतन से।
रोशन
होता
एक
और दीपक
इस
दीपावली में
हवा
का झोका
उड़ा
ले गया संग
जाने
क्यूँ बेख्याली में।
मिलके
साथ
प्यार
की रोशनी से
हजारों
दीए
समेटतें
हैं अब
किरचों
को दर्द की।
डॉ०
भावना कुँअर